उपकार का बदला
उपकार का बदला में उपकार के महत्व पर प्रकाश डाला गया है की किया गया उपकार कभी व्यर्थ नहीं जाता।
आनंद एक गरीब आदमी था, वह बहुत बूढ़ा हो गया था। वह अपने परिवार का भरण-पोषण बाँस के पंखे को बेचकर करता था। गर्मी के दिनों में पंखा घुम-घुम कर बेचता था।
दोपहर में एक नदी किनारे पीपल के पेड़ के नीचे आराम करता था। पंखो के बचे हुए पैसो से कभी मुरही-कचरी, कभी बिस्किट-डालबुत इत्यादि खा कर तालाब से पानी पी कर गमछा बिछाकर लेट जाया करता था।
एक दिन दोपहर के समय आनंद खाने की तैयारी कर रहा था की वंहा एक बूढ़ा बंदर आ गया और उसे टकटकी लगा कर देखने लगा। आनंद को दया आ गया उसने दो कचरी और बिस्किट बंदर को दे दिया। बंदर ने उठाया और खा बड़े चाव से खाने लगा।
उसके बाद रोज दोपहर खाने के समय बंदर वंहा आ जाता तो आनंद कुछ न कुछ उसे खाने को दे देता, और फिर दोनों में दोस्ती हो गयी।
एक दिन ऐसा हुआ की आनंद का एक भी पंखा नहीं बिका और उसे खाने को कुछ भी नहीं था। तब वो भूखा ही पानी पीकर पेड़ के नीचे सो गया।
बंदर रोजाना की तरह आया, तो उसने देखा आनंद कुछ नहीं खाया और उदास हो कर सो गया था।
आनंद के सोने के बाद सिरहाने के पास गठरी में से दो पंखे को लेकर भाग गया, और कुछ देर बाद वह एक पपीता लेकर आया और आनंद को गुर्राकर उठाया, और पपीता दिया। आँखों के इशारो से बताया की मुझे भी दो और तुमभी इस पपीते को खाओ, क्या हुआ दूसरे दिन पंखा जरूर बिकेगा भरोसा दिलाया।
आनंद ने चाकू से पपीता काटकर बंदर को भी दिया और खुद भी खाया। और फिर पंखा बेचने बस्ती की ओर चला गया, और जोर -जोर से पंखा ले लो पंखा ले लो बोलने लगा।
एक घर से एक बूढ़ा पुरुष निकला और पंखे वाले को आवाज़ लगायी और बोले गेट के अंदर आ जाओ और बैठो। फिर उसने दो पंखे दिए और पूछा, ये तुम्हारे पंखे है?एक बंदर आया और पपीता ले गया, ये दोनों पंखे छोड़ गया।
तब आनंद को सब समझ में आ गया और बोला, सरकार बंदर पंखे के बदले पपीता तो ले ही गया है। आप इसे रख लीजिये मुझे पंखा का दाम मिल गया है मुझे। आनंद के इस उत्तर से चकित उस बूढ़े पुरुष ने विस्तार से उस घटना को बताने को कहा। तब आनंद ने सारे घटना को कहा जिसे सुनकर उस बूढ़े पुरुष ने उत्तर दिया की पशु में इतना विवेक है, तब मैं तो इंसान हूँ। ये दोनों पंखे का दाम लेते जाओ, उन्होंने पाँच रुपये देकर उसे विदा किया।
आनंद ने उन्हें धन्यबाद दिया और फिर पंखा ले लो, पंखा ले लो आवाज लगाते हुए आनंद आनंदपुरबक पंखा बेचने चला गया।
समाप्त