पंचतंत्र की दस कहानियाँ |Panchtantra Ki Das Kahaaniyaan

AuthorSmita Mahto last updated Jan 9, 2025
Story of Panchtantra for kids

1.द्विमुखी जुलाहा

बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में मनोहर नाम का एक जुलाहा रहता था, जो कपड़े सिलने का काम करता था। उसकी सिलाई मशीन लकड़ी के उपकरणों से बनी थी। एक दिन अचानक भारी बारिश हो गई, जिससे उसके घर में पानी भर गया और उसकी मशीन पूरी तरह खराब हो गई।

मशीन के खराब हो जाने से मनोहर बहुत चिंतित हो गया। वह सोचने लगा कि अगर जल्दी से उसने मशीन ठीक नहीं की, तो वह कपड़े सिलने का काम नहीं कर पाएगा और उसका परिवार भूखा रह जाएगा।

इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए मनोहर ने जंगल से अच्छी लकड़ी लाने का फैसला किया ताकि वह अपनी मशीन को ठीक कर सके। पूरे दिन जंगल में घूमने के बाद भी उसे कोई सही लकड़ी नहीं मिली, लेकिन फिर उसकी नजर एक बड़े, मजबूत और हरे-भरे पेड़ पर पड़ी। वह पेड़ देखकर मनोहर खुश हो गया और सोचा कि इस पेड़ की लकड़ी उसकी मशीन के लिए सबसे सही होगी।

जैसे ही वह पेड़ को काटने के लिए कुल्हाड़ी उठाने लगा, तभी पेड़ की डाल पर एक देवता प्रकट हो गए। देवता ने कहा, "मैं इस पेड़ पर रहता हूं, इसलिए इसे काटना उचित नहीं है।"

मनोहर ने देवता से अपनी मजबूरी बताई और कहा कि अगर वह पेड़ नहीं काटेगा तो उसकी मशीन ठीक नहीं हो पाएगी और उसके परिवार को भूखा रहना पड़ेगा।

देवता ने उसकी बात सुनकर कहा, "तुम इस पेड़ को मत काटो, इसके बदले में तुम मुझसे जो भी वरदान मांगना चाहो, वह मांग सकते हो।" मनोहर ने देवता से एक दिन का समय मांगा ताकि वह अपने मित्र और पत्नी से सलाह ले सके।

सबसे पहले वह अपने मित्र नाई से मिला, जिसने उसे राज्य मांगने की सलाह दी। लेकिन जब मनोहर ने अपनी पत्नी से सलाह ली, तो उसने कहा कि राज्य मांगने के बजाय दो सिर और चार हाथ मांगो ताकि तुम ज्यादा कपड़े सिल सको और कमाई दोगुनी हो जाए।

मनोहर ने देवता से दो सिर और चार हाथ का वरदान मांगा, जिसे देवता ने खुशी-खुशी दे दिया। पर जब वह गांव वापस लौटा, तो गांव के लोग उसे राक्षस समझकर मारने के लिए उस पर हमला कर देते हैं और उसकी मौत हो जाती है।

कहानी से यह सीख मिलती है कि बिना सोचे-समझे लिया गया कोई भी निर्णय दुखद परिणाम ला सकता है।

2.सांप की कृपा और लालच

 एक नगर में हरिदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था, जिसके पास खेत थे, लेकिन उनमें ज्यादा फसल नहीं होती थी। एक दिन वह अपने खेत में एक पेड़ के नीचे सो रहा था। जब उसकी आंख खुली, तो उसने देखा कि एक सांप फन फैलाए बैठा है। ब्राह्मण को समझ में आया कि यह साधारण सांप नहीं है, बल्कि कोई देवता है। उसने निश्चय किया कि वह इस देवता की पूजा करेगा।

हरिदत्त उठा और दूध लेकर आया, फिर उसने मिट्टी के बर्तन में सांप को दूध दिया। दूध पिलाते समय उसने सांप से क्षमा मांगी और कहा, "हे देव! मैं आपको साधारण सांप समझता रहा, मुझे माफ कर दीजिए। कृपया मुझे बहुत सारा धन और धान्य प्रदान करें।" यह कहकर वह अपने घर लौट आया।

अगले दिन जब वह खेत पहुंचा, तो उसने देखा कि जिस बर्तन में उसने सांप को दूध दिया था, उसमें एक सोने का सिक्का पड़ा हुआ है। हरिदत्त ने सिक्का उठा लिया और अब वह रोज सांप की पूजा करने लगा, और सांप उसे रोज एक सोने का सिक्का देने लगा।

कुछ दिन बाद, हरिदत्त को दूर देश जाना पड़ा, और उसने अपने बेटे से कहा कि वह खेत में जाकर सांप देवता को दूध पिलाए। बेटे ने पिता की आज्ञा से खेत में जाकर सांप के बर्तन में दूध रख दिया। अगली सुबह जब उसने सांप को दूध पिलाने गया, तो उसे वही सोने का सिक्का मिला।

हरिदत्त के बेटे ने सोने का सिक्का उठाया और सोचा कि जरूर इस सांप के बिल में सोने का भंडार होगा। उसने सांप के बिल को खोदने का निर्णय लिया, लेकिन उसे सांप से बहुत डर था। उसने योजना बनाई कि जैसे ही सांप दूध पीने आएगा, वह उसके सिर पर लाठी से वार करेगा, जिससे सांप मर जाएगा। फिर वह आराम से बिल खोदकर सोना निकाल लेगा और अमीर बन जाएगा।

लड़के ने अगले दिन वही किया, लेकिन जब उसने सांप के सिर पर लाठी मारी, तो सांप नहीं मरा, बल्कि गुस्से से भर गया। सांप ने क्रोध में लड़के के पैर में अपने विष भरे दांतों से काट लिया और उसी समय उसकी मृत्यु हो गई। जब हरिदत्त वापस आया, तो उसे यह जानकर बहुत दुख हुआ।

सीख:  बच्चों, लालच का फल हमेशा बुरा होता है। इसलिए कहते हैं कि कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। हमें जो भी है, उससे संतोष करना चाहिए और हमेशा मेहनत करते रहना चाहिए।

3.कुत्ते की लालच और  सीख

एक गांव में एक लालची कुत्ता रहता था, जो हमेशा खाने की तलाश में घूमता रहता था। वह इतना लालची था कि उसे जो भी खाने के लिए मिलता, वह उसे पर्याप्त नहीं समझता। पहले गांव के दूसरे कुत्तों के साथ उसकी अच्छी दोस्ती थी, लेकिन उसकी इस आदत के कारण सभी उससे दूर हो गए। उसे इस बात की कोई परवाह नहीं थी; उसे बस अपने भोजन से मतलब था।

एक दिन उसे एक हड्डी मिली। हड्डी देखकर वह बहुत खुश हुआ और सोचा कि इसका मजा अकेले लेना चाहिए। यह सोचकर वह गांव से जंगल की ओर चल पड़ा।

जब वह पुल के ऊपर से नदी पार कर रहा था, उसकी नजर नीचे ठहरे पानी पर पड़ी। उसकी आंखों में केवल हड्डी का लालच था और उसे यह भी नहीं पता चला कि पानी में उसका अपना ही चेहरा नजर आ रहा है।

उसे लगा कि नीचे एक और कुत्ता है, जिसके पास एक और हड्डी है। उसने सोचा, "अगर मैं उसकी हड्डी छीन लूं, तो मेरे पास दो हड्डियां होंगी और मैं दोनों का मजा ले सकूंगा।" यह सोचकर, वह पानी में कूद पड़ा।

जैसे ही उसकी मुंह से हड्डी नदी में गिरी, उसे अपने किए पर पछतावा हुआ। उसने देखा कि उसकी लालच ने उसे उसकी एकमात्र हड्डी भी खो दी।

इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। लालच करने से हमारा ही नुकसान होता है।

4.गुरु की बेटी का अनोखा स्वयंवर

गंगा नदी के किनारे एक धर्मशाला थी, जहां गुरु जी और उनकी पत्नी रहते थे। गुरु जी अपना अधिकांश समय तप और ध्यान में बिताते थे। एक दिन जब गुरु जी नदी में स्नान कर रहे थे, तभी एक बाज अपने पंजों में एक चुहिया लेकर उड़ रहा था। जैसे ही वह बाज गुरु जी के ऊपर से गुज़रा, चुहिया उसके पंजों से फिसलकर गुरु जी की अंजुली में गिर गई।

गुरु जी ने सोचा कि अगर वह चुहिया को यूं ही छोड़ देंगे, तो बाज उसे फिर से पकड़ लेगा और खा जाएगा। इसलिए उन्होंने चुहिया को पास के एक बरगद के पेड़ के नीचे रख दिया और फिर से स्नान करने लगे। स्नान के बाद, गुरु जी ने अपनी दिव्य शक्तियों का प्रयोग कर चुहिया को एक छोटी लड़की में बदल दिया और उसे अपने आश्रम ले गए।

गुरु जी ने अपनी पत्नी को सारी घटना बताई और कहा, "हमारी कोई संतान नहीं है, इसलिए इस बच्ची को ईश्वर का उपहार मानकर स्वीकार करो और इसे अपनी बेटी की तरह पालो।"

लड़की ने गुरु जी के मार्गदर्शन में पढ़ाई शुरू की और जल्दी ही विद्या में निपुण हो गई। गुरु जी और उनकी पत्नी को अपनी बेटी पर बहुत गर्व था। कुछ समय बाद, गुरु जी की पत्नी ने उन्हें याद दिलाया कि उनकी बेटी अब विवाह योग्य हो गई है।

गुरु जी ने सोचा, "यह विशेष बच्ची है, इसलिए इसका विवाह भी किसी विशेष व्यक्ति से होना चाहिए।" उन्होंने अपनी शक्तियों से सूर्य देव का आह्वान किया और उनसे पूछा, "हे सूर्य देव, क्या आप मेरी बेटी से विवाह करेंगे?"

लेकिन लड़की ने कहा, "पिताजी, सूर्य देव अत्यधिक गर्म और उग्र हैं, मैं उनसे विवाह नहीं कर सकती।"

सूर्य देव ने सुझाव दिया कि बादलों का राजा उनसे बेहतर है, क्योंकि वह सूर्य के प्रकाश को ढक सकते हैं। गुरु जी ने बादलों के राजा को बुलाया, लेकिन लड़की ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि बादलों का राजा ठंडा और गीला है।

बादलों के राजा ने वायुदेव को बेहतर बताया, क्योंकि वे बादलों को इधर-उधर उड़ा सकते हैं। गुरु जी ने वायुदेव को बुलाया, लेकिन लड़की ने कहा, "वायुदेव बहुत तेज और अस्थिर हैं, मैं उनसे शादी नहीं कर सकती।"

वायुदेव ने पहाड़ों के राजा का नाम सुझाया, क्योंकि वे वायुदेव को रोक सकते हैं। गुरु जी ने पहाड़ों के राजा को बुलाया, पर लड़की ने कहा कि वे कठोर और अचल हैं, इसलिए वह उनसे भी विवाह नहीं करना चाहती।

अंत में, पहाड़ों के राजा ने सलाह दी कि चूहों का राजा सबसे बेहतर है, क्योंकि वह पहाड़ों में भी छेद कर सकता है। जब गुरु जी ने चूहों के राजा को बुलाया, तो लड़की ने खुशी-खुशी उनसे विवाह के लिए हामी भर दी।

गुरु जी ने अपनी बेटी को फिर से चुहिया में बदल दिया और उसका विवाह चूहों के राजा से हो गया।

कहानी से सीख: इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि किसी का स्वाभाविक गुण बदला नहीं जा सकता। जो जैसा होता है, वह अंत में अपने स्वभाव के अनुसार ही जीता है।

5.मेंढक और चूहे की दोस्ती का अंत

किसी समय की बात है, एक घने जंगल में एक छोटा सा जलाशय था। उस जलाशय में एक मेंढक रहता था, जिसे हमेशा अकेलापन महसूस होता था। वह सोचता, "काश मेरा भी कोई दोस्त होता, जिससे मैं अपने दिल की बातें कर पाता।"

एक दिन, जलाशय के पास के पेड़ के नीचे से एक चूहा निकला। उसने मेंढक को उदास देखा और पूछा, "तुम इतने परेशान क्यों हो?"
मेंढक ने जवाब दिया, "मेरा कोई दोस्त नहीं है। मैं चाहता हूं कि मेरा भी कोई हो, जिससे मैं सुख-दुख साझा कर सकूं।"
चूहा मुस्कुराया और बोला, "तो अब से मैं तुम्हारा दोस्त हूं। हम दोनों हमेशा साथ रहेंगे।"

दोस्ती होते ही दोनों घंटों बातें करने लगे। कभी मेंढक चूहे के बिल में जाता, तो कभी दोनों जलाशय के किनारे बैठकर मज़ेदार बातें करते। उनकी दोस्ती दिन-ब-दिन गहरी होती गई। लेकिन एक दिन मेंढक को महसूस हुआ कि वह तो अक्सर चूहे के पास आता है, लेकिन चूहा कभी उसके जलाशय में नहीं आता।

यह सोचकर मेंढक ने एक चाल चली। उसने चूहे से कहा, "दोस्त, हमारी दोस्ती इतनी गहरी है कि हमें हमेशा एक-दूसरे के करीब महसूस करना चाहिए। क्यों न हम एक रस्सी से तुम्हारी पूंछ और मेरे पैर को बांध लें? इससे जब भी किसी को दूसरे की याद आएगी, तो रस्सी खींचकर बुला सकते हैं।"
भोले चूहे ने सहमति दे दी और दोनों ने अपनी पूंछ और पैर बांध लिए।

जैसे ही रस्सी बांधी गई, मेंढक ने छलांग लगाकर पानी में डुबकी लगा ली। चूहा भी उसके साथ पानी में खिंच गया। पानी में जाते ही चूहे की हालत खराब हो गई। वह छटपटाने लगा क्योंकि उसे तैरना नहीं आता था। आखिरकार, चूहे ने दम तोड़ दिया।

उसी समय, आसमान में उड़ता एक बाज पानी में तैरते हुए चूहे को देख रहा था। वह झट से नीचे आया और चूहे को अपनी चोंच में दबा लिया। चूहे के साथ बंधे होने के कारण मेंढक भी बाज के साथ आसमान में उठ गया।
पहले तो मेंढक को समझ नहीं आया कि वह हवा में कैसे उड़ रहा है। जैसे ही उसने ऊपर देखा, बाज को देख उसका दिल दहल गया। वह अपनी जान की भीख मांगने लगा। लेकिन बाज ने चूहे के साथ-साथ मेंढक को भी खा लिया।

कहानी से सीख

जो दूसरों को धोखा देने की कोशिश करता है, अंत में खुद ही धोखा खाता है। इसलिए हमेशा दूसरों का भला करने की सोच रखनी चाहिए।

6.ब्राह्मणी और तिल की कहानी

बहुत समय पहले, एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। एक दिन उनके घर अचानक कुछ अतिथि आ गए। उनकी स्थिति इतनी खराब थी कि अतिथियों को खिलाने के लिए घर में कुछ भी नहीं था। इस पर ब्राह्मण और उसकी पत्नी के बीच बहस होने लगी।

पत्नी नाराज होकर बोली, “तुम अपनी जिम्मेदारियों को कभी ठीक से नहीं निभाते। देखो, आज हमारे घर मेहमान आए हैं और हमारे पास उन्हें खिलाने के लिए अनाज तक नहीं है!”

ब्राह्मण ने शांत स्वर में कहा, “कल कर्क संक्रांति है। मैं भिक्षा मांगने दूसरे गांव जाऊंगा। वहां एक ब्राह्मण ने सूर्य देव को दान देने के लिए मुझे बुलाया है। तब तक घर में जो कुछ भी है, उसी से अतिथियों का आदर सत्कार करो।”

पत्नी खीझते हुए बोली, “घर में सिर्फ एक मुट्ठी तिल पड़े हैं। क्या मैं अतिथियों को सूखे तिल खिलाऊं?”

ब्राह्मण ने उसे समझाते हुए कहा, “जीवन में संतोष होना चाहिए। लालच और अधिक की इच्छा हमेशा नुकसान पहुंचाती है। यह समझाने के लिए मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं।”

उसने एक कहानी सुनाई। एक शिकारी जंगल में शिकार की तलाश में था। उसने एक विशाल सूअर को देखा और उस पर तीर चला दिया। सूअर घायल होकर शिकारी पर पलटवार करता है, जिससे दोनों की मौत हो जाती है।

उसी दौरान एक भूखा गीदड़ वहां से गुजरता है। उसने दो शवों को देखकर सोचा, “आज तो भगवान ने मुझ पर बड़ी कृपा की है। मैं इस भोजन को धीरे-धीरे खाऊंगा ताकि लंबे समय तक भूखा न रहूं।”

गीदड़ ने छोटे-छोटे टुकड़ों से खाना शुरू किया। फिर उसकी नजर शिकारी के धनुष पर पड़ी। उसने सोचा, “इसे भी चबाकर देखता हूं।” जैसे ही उसने धनुष की डोर काटी, धनुष का एक सिरा तेजी से उछलकर उसके माथे में जा घुसा। गीदड़ वहीं मर गया।

ब्राह्मण ने कहा, “लालच और अधिक पाने की इच्छा हमेशा नुकसान करती है। हमें अपने पास जो है, उसी में संतोष करना चाहिए।”

पत्नी ने ब्राह्मण की बात मान ली और अतिथियों के लिए तिल तैयार करने लगी। तभी अचानक एक कुत्ता आ गया और उन तिलों पर पेशाब कर गया। अब तिल खराब हो गए थे।

पत्नी परेशान हो गई और सोचने लगी, “क्या किया जाए?” फिर उसने सोचा, “इन गंदे तिलों के बदले साफ तिल मांगे जा सकते हैं। किसी को पता भी नहीं चलेगा।”

वह गंदे तिल लेकर गांव में घूमने लगी। एक महिला ने तिल लेने की इच्छा जताई। लेकिन उसके बेटे ने, जो पढ़ा-लिखा था, कहा, “कोई भी साफ तिल गंदे तिलों के बदले क्यों देगा? जरूर इनमें कोई खोट होगा।”

महिला ने तिल लेने से मना कर दिया।

ब्राह्मण की पत्नी को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसे समझ आया कि जीवन में जो है, उसी में संतोष करना चाहिए। अधिक पाने की चाहत सिर्फ परेशानी लाती है।

कहानी से सीख

जो हमारे पास है, हमें उसी में संतोष करना चाहिए। अधिक पाने की चाहत और दूसरों के पास देखकर लालच करना केवल परेशानियां बढ़ाता है। संतोष में ही सुख है।

7.गौरैया और बंदरों की समझ

जंगल के एक घने पेड़ पर एक गौरैया और उसके साथी का घोंसला था। दोनों अपनी छोटी-सी दुनिया में खुश थे। एक सर्दियों का मौसम आया, और इस बार ठंड असहनीय हो गई। ठंड से बचने के लिए कुछ बंदर उस पेड़ के नीचे आ पहुंचे। वे ठंडी हवाओं से कांप रहे थे और बहुत परेशान थे। ठंड से बचने के उपाय सोचते हुए एक बंदर की नजर पास में पड़ी सूखी पत्तियों पर गई।

बंदर ने सुझाव दिया, "चलो इन सूखी पत्तियों को इकट्ठा करते हैं और आग जलाने की कोशिश करते हैं।" सभी बंदरों ने मिलकर पत्तियों को एक जगह इकट्ठा किया और आग जलाने का उपाय ढूंढने लगे। यह सब गौरैया अपने घोंसले से देख रही थी। उसे लगा कि वह उनकी मदद कर सकती है। उसने बंदरों से कहा, "तुम लोग दिखने में समझदार लगते हो, फिर तुम अपना घर क्यों नहीं बनाते? ठंड से बचने के लिए ठोस इंतजाम क्यों नहीं करते?"

बंदर ठंड और भूख से पहले ही चिढ़े हुए थे। उन्होंने गुस्से में कहा, "तुम अपने काम से काम रखो। हमें मत सिखाओ।" लेकिन बंदर आग जलाने के अलग-अलग तरीके सोचते रहे। तभी उनकी नजर एक जुगनू पर पड़ी। बंदरों में से एक ने चिल्लाकर कहा, "देखो, हवा में चिंगारी है। इसे पकड़कर आग जला सकते हैं।"

सभी बंदर जुगनू को पकड़ने की कोशिश करने लगे। गौरैया फिर बोली, "अरे, यह जुगनू है। इससे आग नहीं जलेगी। तुम पत्थरों को रगड़कर आग जला सकते हो।" बंदरों ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। जुगनू को पकड़ने की कोशिश करते हुए आखिरकार उन्होंने उसे पकड़ लिया, लेकिन उससे आग नहीं जली। कुछ देर बाद जुगनू उड़ गया।

अब बंदर और ज्यादा चिढ़ गए। गौरैया ने फिर सलाह दी, "पत्थरों को रगड़ने से आग जल सकती है। मेरी बात मान लो।" इस बार एक गुस्साए बंदर ने पेड़ पर चढ़कर गौरैया के घोंसले को तोड़ दिया। घोंसला टूटने पर गौरैया दुखी हो गई और डर के मारे वहां से उड़कर कहीं और चली गई।

कहानी का संदेश
हर किसी को सलाह देना सही नहीं है। सलाह और ज्ञान सिर्फ उन्हीं को देना चाहिए जो समझदार हों और उसे स्वीकार कर सकें। मूर्ख को समझाने से कभी-कभी नुकसान अपना ही हो सकता है।

8.कौवा और शैतान सांप

brow and snake story

एक बार की बात है, एक जंगल में एक पेड़ पर कौवों का एक जोड़ा खुशी-खुशी अपना जीवन बिता रहा था। वो दोनों दिन-रात अपने जीवन के छोटे-छोटे सुखों में मग्न थे। लेकिन उनकी खुशी को एक सांप ने अपनी बुरी नज़र से देख लिया। उसी पेड़ के नीचे बने बिल में एक सांप रहता था। जब भी कौवे दाना चुगने जाते, सांप उनके अंडे चुपके से खा जाता। कौवों को समझ में नहीं आता था कि उनके अंडे क्यों गायब हो रहे हैं, लेकिन वे यह नहीं जान पाते थे कि यह काम सांप कर रहा है।

कई दिन इस तरह से बीत गए। एक दिन, कौवों का जोड़ा दाना चुगने जल्दी लौट आया और उन्हें देखा कि उनके अंडों को सांप खा रहा था। अब उन्होंने ठान लिया कि वे अपने घोंसले को उस जगह से हटा लेंगे। वे पेड़ की एक ऊंची शाखा पर अपना नया घोंसला बनाने लगे। सांप ने देखा कि कौवों ने अपना घोंसला बदल लिया है, लेकिन उसने हार नहीं मानी और कौवों के जाने का इंतजार करने लगा।

धीरे-धीरे समय बीतता गया और कौवे के अंडों से बच्चे भी निकल आए। एक दिन सांप को उनके नए घोंसले का पता चल गया और वह मौके का इंतजार करने लगा। जैसे ही कौवे दाना चुगने के लिए गए, सांप घोंसले की तरफ बढ़ने लगा। लेकिन इस बार कौवों ने पहले ही आकर अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर छुपा लिया था। सांप ने देखा कि घोंसला खाली है और वह समझ गया कि कौवों ने उसकी चाल समझ ली है। वह फिर से अपने बिल में लौट गया और अगला मौका पाने के लिए इंतजार करने लगा।

इसी बीच, कौवे ने सांप से पीछा छुड़ाने का एक तरकीब सोची। वह उड़कर एक राजमहल की ओर गया, जहां राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ खेल रही थी। कौवे ने राजकुमारी के गले से मोतियों का हार चुराया और महल में शोर मचवा दिया। शोर सुनकर महल के पहरेदार दौड़ पड़े और कौवे का पीछा करने लगे। कौवा हार लेकर जंगल में वापस लौटा और उसे सांप के बिल में डाल दिया। सैनिक भी कौवे का पीछा करते हुए वहां पहुंच गए और जैसे ही उन्होंने बिल में हाथ डाला, सांप फुंकारते हुए बाहर निकला। सैनिकों ने डरकर तलवारों से उस पर हमला किया और सांप को घायल कर दिया। सांप अपनी जान बचाकर वहां से भाग गया।

अब कौवा और उसका परिवार खुशी-खुशी रहने लगे, बिना किसी डर के।

कहानी से सीख: हमें यह समझना चाहिए कि किसी भी कमजोरी का फायदा नहीं उठाना चाहिए। मुश्किल समय में समझदारी से काम लेना जरूरी है।

9.जंगल की दो सहेलियां और चालाक बंदर

Chaalak bandar and billi ki kahani

एक घने जंगल में सभी जानवर मिलजुल कर रहते थे। वे जंगल के नियमों का पालन करते और हर त्योहार साथ मनाते थे। उसी जंगल में चीनी और मिनी नाम की दो बिल्लियां रहती थीं। वे गहरी सहेलियां थीं। दोनों हर काम साथ करतीं—बीमारी में एक-दूसरे का ख्याल रखना, बाहर घूमने जाना और यहां तक कि खाना भी साथ खाना। उनकी दोस्ती की सभी जानवर तारीफ करते थे।

एक दिन मिनी को किसी काम से बाजार जाना पड़ा। चीनी किसी कारण उसके साथ नहीं जा सकी। अकेले समय काटना मुश्किल लग रहा था, तो चीनी ने सोचा कि क्यों न थोड़ी देर बाहर घूम आए। रास्ते में चलते हुए उसे रोटी का एक टुकड़ा मिला। रोटी देखकर उसके मन में लालच आ गया। उसने सोचा, "यह रोटी मैं अकेले खा लूंगी।" वह रोटी लेकर घर लौट आई।

जैसे ही वह रोटी खाने को हुई, तभी मिनी आ गई। मिनी ने रोटी देखी और पूछा, "चीनी, हम तो हमेशा सब कुछ बांटकर खाते हैं। क्या आज तुम मुझे रोटी नहीं दोगी?"

चीनी घबरा गई। उसने जल्दी से कहा, "अरे नहीं, मैं तो इसे आधा-आधा कर रही थी ताकि हम दोनों को बराबर रोटी मिले।"

मिनी समझ गई कि चीनी रोटी अकेले खाना चाहती थी, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। जब रोटी के टुकड़े किए गए, तो मिनी चीख पड़ी, "मेरे हिस्से में कम रोटी आई है!" चीनी बोली, "नहीं, मैंने बराबर बांटा है।"

इस बात पर दोनों में झगड़ा शुरू हो गया। उनकी लड़ाई की खबर जंगल में फैल गई। अन्य जानवर उनकी लड़ाई देखने इकट्ठा हो गए। तभी वहां एक चालाक बंदर आया। उसने कहा, "मैं तुम दोनों के बीच रोटी को बराबर बांट दूंगा।"

दोनों बिल्लियों ने अनमने मन से रोटी बंदर को दे दी। बंदर कहीं से एक तराजू ले आया। उसने रोटी के टुकड़े तराजू के दोनों पलड़ों में रख दिए। जिस पलड़े में वजन ज्यादा होता, बंदर वहां से थोड़ा-सा रोटी का टुकड़ा तोड़कर खा लेता और कहता, "यह टुकड़ा दूसरी तरफ के वजन के बराबर करने के लिए खा रहा हूं।"

धीरे-धीरे रोटी के दोनों टुकड़े इतने छोटे हो गए कि बिल्लियों के हिस्से में कुछ खास नहीं बचा। यह देखकर बिल्लियां बोलीं, "अब रोटी के टुकड़े हमें वापस दे दो। हम इसे आपस में बांट लेंगे।"

बंदर हंसा और बोला, "वाह! अब मुझे मेरी मेहनत का फल नहीं मिलेगा क्या?" यह कहकर उसने दोनों टुकड़े खा लिए और वहां से चलता बना।

चीनी और मिनी एक-दूसरे का मुंह ताकती रह गईं। उन्होंने महसूस किया कि लालच और झगड़े की वजह से वे अपनी रोटी भी गंवा बैठीं।

कहानी से सीख:

हमें कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। जो कुछ भी हमारे पास है, उससे संतोष करना चाहिए और मिलजुल कर रहना चाहिए। लालच करने से जो हमारे पास है, उससे भी हाथ धोना पड़ सकता है।

10.शेर और घमंडी सियार की कहानी

Panchtantra ki kahani- tiger

सुंदरवन नामक एक घने जंगल में एक बलवान शेर रहता था। शेर रोज शिकार करने के लिए नदी के किनारे जाया करता। एक दिन, जब वह शिकार करके लौट रहा था, तो उसे रास्ते में एक सियार मिला। शेर को देखते ही सियार उसके कदमों में लेट गया।

शेर ने हैरान होकर पूछा, "अरे भाई, यह तुम क्या कर रहे हो?"

सियार ने कहा, "महाराज, आप जंगल के राजा हैं। मैं आपका सेवक बनना चाहता हूं। मैं पूरी ईमानदारी और निष्ठा से आपकी सेवा करूंगा। बदले में आपके शिकार से बचा हुआ मांस खा लिया करूंगा।"

शेर को सियार की बात पसंद आई, और उसने उसे अपना सेवक बना लिया। इसके बाद, शेर जब भी शिकार पर जाता, सियार भी उसके साथ जाने लगा। समय के साथ दोनों की दोस्ती गहरी हो गई। सियार शेर के शिकार का बचा-खुचा मांस खाकर ताकतवर होता जा रहा था।

कुछ समय बाद, सियार के मन में घमंड आ गया। एक दिन उसने शेर से कहा, "अब मैं भी तुम्हारे जितना बलवान हो गया हूं। आज मैं खुद एक हाथी पर हमला करूंगा। जब हाथी मर जाएगा, तो उसका मांस मैं खाऊंगा, और जो बचेगा, वह तुम्हारे लिए छोड़ दूंगा।"

शेर ने सियार की बात सुनकर हंसते हुए कहा, "तुम मजाक कर रहे हो, है ना? हाथी बहुत ताकतवर होता है। तुम उससे मुकाबला नहीं कर सकते।"

लेकिन सियार को अपनी ताकत पर अति-विश्वास हो गया था। उसने शेर की बात को नजरअंदाज कर दिया और एक पेड़ पर चढ़कर हाथी के आने का इंतजार करने लगा।

थोड़ी देर बाद, एक विशाल हाथी पेड़ के नीचे से गुजरने लगा। जैसे ही हाथी पेड़ के पास पहुंचा, सियार ने उस पर कूदने की कोशिश की। लेकिन वह सही जगह छलांग नहीं लगा पाया और सीधे हाथी के पैरों के नीचे गिर पड़ा।

हाथी ने बिना रुके अपना पैर आगे बढ़ाया और सियार को कुचलकर आगे बढ़ गया। इस तरह, सियार ने शेर की सलाह न मानकर अपनी जान गंवा दी।

कहानी से सीख:

  1. घमंड करना कभी सही नहीं होता।
  2. सच्चे दोस्त की सलाह को अनदेखा करने से बड़ा नुकसान हो सकता है।
  3. अपनी क्षमता को पहचानना और उसी के अनुसार निर्णय लेना चाहिए।
Smita Mahto - Writter
Written by

Smita Mahto

मैं एक कंप्यूटर विज्ञान में स्नातक हूँ और अपने ब्लॉग लेखन में आत्मसमर्पित हूँ। पढ़ाई और लेखन में मेरा शौक मेरे जीवन को सजीव बनाए रखता है, और मैं नए चीजों का अन्वेषण करने में रुचि रखती हूँ। नई बातें गहराई से पढ़ने का मेरा शौक मेरे लेखन को विशेष बनाता है। मेरा उद्दीपन तकनीकी जगत में है, और मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से नवीनतम तकनीकी गतिविधियों को साझा करती हूँ।