पंचतंत्र की दस कहानियाँ |Panchtantra Ki Das Kahaaniyaan

AuthorSmita MahtoSep 29, 2024
Story of Panchtantra for kids

1.द्विमुखी जुलाहा

बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में मनोहर नाम का एक जुलाहा रहता था, जो कपड़े सिलने का काम करता था। उसकी सिलाई मशीन लकड़ी के उपकरणों से बनी थी। एक दिन अचानक भारी बारिश हो गई, जिससे उसके घर में पानी भर गया और उसकी मशीन पूरी तरह खराब हो गई।

मशीन के खराब हो जाने से मनोहर बहुत चिंतित हो गया। वह सोचने लगा कि अगर जल्दी से उसने मशीन ठीक नहीं की, तो वह कपड़े सिलने का काम नहीं कर पाएगा और उसका परिवार भूखा रह जाएगा।

इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए मनोहर ने जंगल से अच्छी लकड़ी लाने का फैसला किया ताकि वह अपनी मशीन को ठीक कर सके। पूरे दिन जंगल में घूमने के बाद भी उसे कोई सही लकड़ी नहीं मिली, लेकिन फिर उसकी नजर एक बड़े, मजबूत और हरे-भरे पेड़ पर पड़ी। वह पेड़ देखकर मनोहर खुश हो गया और सोचा कि इस पेड़ की लकड़ी उसकी मशीन के लिए सबसे सही होगी।

जैसे ही वह पेड़ को काटने के लिए कुल्हाड़ी उठाने लगा, तभी पेड़ की डाल पर एक देवता प्रकट हो गए। देवता ने कहा, "मैं इस पेड़ पर रहता हूं, इसलिए इसे काटना उचित नहीं है।"

मनोहर ने देवता से अपनी मजबूरी बताई और कहा कि अगर वह पेड़ नहीं काटेगा तो उसकी मशीन ठीक नहीं हो पाएगी और उसके परिवार को भूखा रहना पड़ेगा।

देवता ने उसकी बात सुनकर कहा, "तुम इस पेड़ को मत काटो, इसके बदले में तुम मुझसे जो भी वरदान मांगना चाहो, वह मांग सकते हो।" मनोहर ने देवता से एक दिन का समय मांगा ताकि वह अपने मित्र और पत्नी से सलाह ले सके।

सबसे पहले वह अपने मित्र नाई से मिला, जिसने उसे राज्य मांगने की सलाह दी। लेकिन जब मनोहर ने अपनी पत्नी से सलाह ली, तो उसने कहा कि राज्य मांगने के बजाय दो सिर और चार हाथ मांगो ताकि तुम ज्यादा कपड़े सिल सको और कमाई दोगुनी हो जाए।

मनोहर ने देवता से दो सिर और चार हाथ का वरदान मांगा, जिसे देवता ने खुशी-खुशी दे दिया। पर जब वह गांव वापस लौटा, तो गांव के लोग उसे राक्षस समझकर मारने के लिए उस पर हमला कर देते हैं और उसकी मौत हो जाती है।

कहानी से यह सीख मिलती है कि बिना सोचे-समझे लिया गया कोई भी निर्णय दुखद परिणाम ला सकता है।

2.सांप की कृपा और लालच

 एक नगर में हरिदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था, जिसके पास खेत थे, लेकिन उनमें ज्यादा फसल नहीं होती थी। एक दिन वह अपने खेत में एक पेड़ के नीचे सो रहा था। जब उसकी आंख खुली, तो उसने देखा कि एक सांप फन फैलाए बैठा है। ब्राह्मण को समझ में आया कि यह साधारण सांप नहीं है, बल्कि कोई देवता है। उसने निश्चय किया कि वह इस देवता की पूजा करेगा।

हरिदत्त उठा और दूध लेकर आया, फिर उसने मिट्टी के बर्तन में सांप को दूध दिया। दूध पिलाते समय उसने सांप से क्षमा मांगी और कहा, "हे देव! मैं आपको साधारण सांप समझता रहा, मुझे माफ कर दीजिए। कृपया मुझे बहुत सारा धन और धान्य प्रदान करें।" यह कहकर वह अपने घर लौट आया।

अगले दिन जब वह खेत पहुंचा, तो उसने देखा कि जिस बर्तन में उसने सांप को दूध दिया था, उसमें एक सोने का सिक्का पड़ा हुआ है। हरिदत्त ने सिक्का उठा लिया और अब वह रोज सांप की पूजा करने लगा, और सांप उसे रोज एक सोने का सिक्का देने लगा।

कुछ दिन बाद, हरिदत्त को दूर देश जाना पड़ा, और उसने अपने बेटे से कहा कि वह खेत में जाकर सांप देवता को दूध पिलाए। बेटे ने पिता की आज्ञा से खेत में जाकर सांप के बर्तन में दूध रख दिया। अगली सुबह जब उसने सांप को दूध पिलाने गया, तो उसे वही सोने का सिक्का मिला।

हरिदत्त के बेटे ने सोने का सिक्का उठाया और सोचा कि जरूर इस सांप के बिल में सोने का भंडार होगा। उसने सांप के बिल को खोदने का निर्णय लिया, लेकिन उसे सांप से बहुत डर था। उसने योजना बनाई कि जैसे ही सांप दूध पीने आएगा, वह उसके सिर पर लाठी से वार करेगा, जिससे सांप मर जाएगा। फिर वह आराम से बिल खोदकर सोना निकाल लेगा और अमीर बन जाएगा।

लड़के ने अगले दिन वही किया, लेकिन जब उसने सांप के सिर पर लाठी मारी, तो सांप नहीं मरा, बल्कि गुस्से से भर गया। सांप ने क्रोध में लड़के के पैर में अपने विष भरे दांतों से काट लिया और उसी समय उसकी मृत्यु हो गई। जब हरिदत्त वापस आया, तो उसे यह जानकर बहुत दुख हुआ।

सीख:  बच्चों, लालच का फल हमेशा बुरा होता है। इसलिए कहते हैं कि कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। हमें जो भी है, उससे संतोष करना चाहिए और हमेशा मेहनत करते रहना चाहिए।

3.कुत्ते की लालच और  सीख

एक गांव में एक लालची कुत्ता रहता था, जो हमेशा खाने की तलाश में घूमता रहता था। वह इतना लालची था कि उसे जो भी खाने के लिए मिलता, वह उसे पर्याप्त नहीं समझता। पहले गांव के दूसरे कुत्तों के साथ उसकी अच्छी दोस्ती थी, लेकिन उसकी इस आदत के कारण सभी उससे दूर हो गए। उसे इस बात की कोई परवाह नहीं थी; उसे बस अपने भोजन से मतलब था।

एक दिन उसे एक हड्डी मिली। हड्डी देखकर वह बहुत खुश हुआ और सोचा कि इसका मजा अकेले लेना चाहिए। यह सोचकर वह गांव से जंगल की ओर चल पड़ा।

जब वह पुल के ऊपर से नदी पार कर रहा था, उसकी नजर नीचे ठहरे पानी पर पड़ी। उसकी आंखों में केवल हड्डी का लालच था और उसे यह भी नहीं पता चला कि पानी में उसका अपना ही चेहरा नजर आ रहा है।

उसे लगा कि नीचे एक और कुत्ता है, जिसके पास एक और हड्डी है। उसने सोचा, "अगर मैं उसकी हड्डी छीन लूं, तो मेरे पास दो हड्डियां होंगी और मैं दोनों का मजा ले सकूंगा।" यह सोचकर, वह पानी में कूद पड़ा।

जैसे ही उसकी मुंह से हड्डी नदी में गिरी, उसे अपने किए पर पछतावा हुआ। उसने देखा कि उसकी लालच ने उसे उसकी एकमात्र हड्डी भी खो दी।

इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। लालच करने से हमारा ही नुकसान होता है।

4.गुरु की बेटी का अनोखा स्वयंवर

गंगा नदी के किनारे एक धर्मशाला थी, जहां गुरु जी और उनकी पत्नी रहते थे। गुरु जी अपना अधिकांश समय तप और ध्यान में बिताते थे। एक दिन जब गुरु जी नदी में स्नान कर रहे थे, तभी एक बाज अपने पंजों में एक चुहिया लेकर उड़ रहा था। जैसे ही वह बाज गुरु जी के ऊपर से गुज़रा, चुहिया उसके पंजों से फिसलकर गुरु जी की अंजुली में गिर गई।

गुरु जी ने सोचा कि अगर वह चुहिया को यूं ही छोड़ देंगे, तो बाज उसे फिर से पकड़ लेगा और खा जाएगा। इसलिए उन्होंने चुहिया को पास के एक बरगद के पेड़ के नीचे रख दिया और फिर से स्नान करने लगे। स्नान के बाद, गुरु जी ने अपनी दिव्य शक्तियों का प्रयोग कर चुहिया को एक छोटी लड़की में बदल दिया और उसे अपने आश्रम ले गए।

गुरु जी ने अपनी पत्नी को सारी घटना बताई और कहा, "हमारी कोई संतान नहीं है, इसलिए इस बच्ची को ईश्वर का उपहार मानकर स्वीकार करो और इसे अपनी बेटी की तरह पालो।"

लड़की ने गुरु जी के मार्गदर्शन में पढ़ाई शुरू की और जल्दी ही विद्या में निपुण हो गई। गुरु जी और उनकी पत्नी को अपनी बेटी पर बहुत गर्व था। कुछ समय बाद, गुरु जी की पत्नी ने उन्हें याद दिलाया कि उनकी बेटी अब विवाह योग्य हो गई है।

गुरु जी ने सोचा, "यह विशेष बच्ची है, इसलिए इसका विवाह भी किसी विशेष व्यक्ति से होना चाहिए।" उन्होंने अपनी शक्तियों से सूर्य देव का आह्वान किया और उनसे पूछा, "हे सूर्य देव, क्या आप मेरी बेटी से विवाह करेंगे?"

लेकिन लड़की ने कहा, "पिताजी, सूर्य देव अत्यधिक गर्म और उग्र हैं, मैं उनसे विवाह नहीं कर सकती।"

सूर्य देव ने सुझाव दिया कि बादलों का राजा उनसे बेहतर है, क्योंकि वह सूर्य के प्रकाश को ढक सकते हैं। गुरु जी ने बादलों के राजा को बुलाया, लेकिन लड़की ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि बादलों का राजा ठंडा और गीला है।

बादलों के राजा ने वायुदेव को बेहतर बताया, क्योंकि वे बादलों को इधर-उधर उड़ा सकते हैं। गुरु जी ने वायुदेव को बुलाया, लेकिन लड़की ने कहा, "वायुदेव बहुत तेज और अस्थिर हैं, मैं उनसे शादी नहीं कर सकती।"

वायुदेव ने पहाड़ों के राजा का नाम सुझाया, क्योंकि वे वायुदेव को रोक सकते हैं। गुरु जी ने पहाड़ों के राजा को बुलाया, पर लड़की ने कहा कि वे कठोर और अचल हैं, इसलिए वह उनसे भी विवाह नहीं करना चाहती।

अंत में, पहाड़ों के राजा ने सलाह दी कि चूहों का राजा सबसे बेहतर है, क्योंकि वह पहाड़ों में भी छेद कर सकता है। जब गुरु जी ने चूहों के राजा को बुलाया, तो लड़की ने खुशी-खुशी उनसे विवाह के लिए हामी भर दी।

गुरु जी ने अपनी बेटी को फिर से चुहिया में बदल दिया और उसका विवाह चूहों के राजा से हो गया।

**कहानी से सीख:** इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि किसी का स्वाभाविक गुण बदला नहीं जा सकता। जो जैसा होता है, वह अंत में अपने स्वभाव के अनुसार ही जीता है।

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