एक समय की बात है, शहर से कुछ दूरी पर एक मंदिर का निर्माण हो रहा था। मंदिर के निर्माण में लकड़ियों का इस्तेमाल किया जा रहा था, जिसके लिए शहर से कुछ मजदूर बुलाए गए थे। रोज दोपहर के समय मजदूर खाना खाने के लिए शहर जाया करते थे और एक घंटे के लिए निर्माण स्थल पर कोई नहीं रहता था।
एक दिन जब मजदूर खाना खाने के लिए जा रहे थे, तब एक मजदूर ने लकड़ी आधी ही चीर रखी थी। ताकि वापस आकर काम जारी रख सके, उसने लकड़ी के बीच में एक खूंटा फंसा दिया, जिससे आरी फंसाने में आसानी हो। मजदूरों के जाने के कुछ देर बाद, बंदरों का एक समूह वहां आ पहुंचा।
उस समूह में एक शरारती बंदर भी था, जो वहां पड़ी चीजों से छेड़छाड़ करने लगा। समूह के सरदार ने बाकी बंदरों को समझाया कि किसी भी चीज को न छेड़ें, लेकिन शरारती बंदर सबसे बचकर पीछे रह गया और अपनी शरारतों में जुट गया।
शरारत करते-करते उसकी नजर उस अधचिरी लकड़ी पर पड़ी, जिसमें खूंटा फंसा हुआ था। उसे देखकर बंदर सोचने लगा कि आखिर इसे यहां क्यों फंसाया गया है और इसे निकालने पर क्या होगा। यह सोचकर उसने खूंटा खींचना शुरू कर दिया।
खूंटा थोड़ा-थोड़ा हिलने लगा, जिससे बंदर को और मजा आने लगा। वह पूरी ताकत से खूंटा खींचने में जुट गया। लेकिन उसे यह ध्यान ही नहीं रहा कि उसकी पूंछ लकड़ी के दो पाटों के बीच में फंस गई थी। जैसे ही बंदर ने जोर लगाकर खूंटा बाहर निकाला, लकड़ी के दोनों हिस्से आपस में चिपक गए और उसकी पूंछ बुरी तरह से फंस गई।
पूंछ फंसते ही बंदर दर्द से चिल्लाने लगा। उसी वक्त मजदूर भी वापस आ गए। उन्हें देखकर बंदर घबराया और भागने की कोशिश करने लगा, जिससे उसकी पूंछ टूट गई। वह टूटी हुई पूंछ के साथ चीखते हुए अपने झुंड के पास भागा। वहां पहुंचते ही बाकी सारे बंदर उसकी टूटी पूंछ देखकर हंसने लगे।
**कहानी से सीख:**
हमें दूसरों के काम में बिना वजह दखल नहीं देना चाहिए और न ही उनकी चीजों के साथ छेड़छाड़ करनी चाहिए, क्योंकि इसका परिणाम अक्सर नुकसानदायक होता है।