गर्मियों के दिनों की बात है, जब सूरज आग बरसा रहा था और हर कोई पानी की तलाश में था। एक प्यासी चींटी भी अपनी प्यास बुझाने के लिए इधर-उधर भटक रही थी। चलते-चलते वह एक नदी के पास पहुंची। नदी का पानी साफ और ठंडा था, लेकिन चींटी इतनी छोटी थी कि सीधे नदी में जाकर पानी नहीं पी सकती थी।
वह पास ही पड़े एक छोटे से पत्थर पर चढ़ गई और वहीं से झुककर नदी का पानी पीने की कोशिश करने लगी। जैसे ही वह पानी पीने के लिए थोड़ा और झुकी, उसका संतुलन बिगड़ गया और वह नदी के तेज बहाव में गिर पड़ी।
पास के एक पेड़ पर एक कबूतर बैठा हुआ यह सब देख रहा था। उसने चींटी को नदी में डूबते हुए देखा और तुरंत मदद करने का फैसला किया। कबूतर ने झट से पेड़ की एक हरी पत्ती तोड़ी और उसे नदी में फेंक दिया। बहती हुई पत्ती चींटी के पास आकर ठहर गई। चींटी ने पत्ती पर चढ़कर अपनी जान बचाई। धीरे-धीरे पत्ती नदी के किनारे पहुंच गई, और चींटी सुरक्षित जमीन पर आ गई। उसने अपने प्राण बचाने के लिए कबूतर को धन्यवाद दिया और अपनी राह चली गई।
कुछ दिनों बाद, वही चींटी नदी किनारे घूम रही थी। उसने देखा कि एक शिकारी पेड़ के नीचे जाल बिछा रहा था। शिकारी ने जाल पर दाने डाल दिए और पास के झाड़ी में छिपकर कबूतर का इंतजार करने लगा। कबूतर, जो इस खतरे से बेखबर था, जैसे ही जमीन पर दाना चुगने के लिए उतरा, शिकारी के जाल में फंस गया।
चींटी ने यह दृश्य देखा और तुरंत समझ गई कि कबूतर खतरे में है। उसने शिकारी को सबक सिखाने का निश्चय किया। चींटी तेजी से शिकारी के पैर पर चढ़ गई और उसे जोर से काट लिया। अचानक दर्द से कराहते हुए शिकारी ने अपने पैर को सहलाने के लिए जाल को नीचे फेंक दिया। इसी बीच कबूतर ने मौका पाकर जाल से बाहर निकलकर उड़ान भर ली।
चींटी की मदद से कबूतर की जान बच गई। दोनों ने एक-दूसरे की जान बचाई और एक गहरी दोस्ती की मिसाल पेश की।
कहानी से सीख: निःस्वार्थ मदद का फल हमेशा अच्छा होता है। जो दूसरों की भलाई करता है, उसके साथ जीवन में भी अच्छा ही होता है।