अकबर अपने दरबार में विद्यावानों और बुद्धिमानों की सभा में बैठे थे। दरबार में हंसी-मजाक का माहौल था। बीरबल, अपने हाजिरजवाबी और सूझबूझ के लिए प्रसिद्ध, दरबार की शोभा बढ़ा रहे थे।
उनकी चतुराई और त्वरित बुद्धि से प्रसन्न होकर, अकबर ने बीरबल को पुरस्कार देने का वादा किया।
समय बीतता गया, दिन रात बदलते रहे, लेकिन अकबर द्वारा दिया गया वादा धीरे-धीरे बीरबल के मन में एक चिंता का विषय बन गया।
एक ओर, वे अकबर से सीधे वादे की याद दिलाने में हिचकिचा रहे थे, क्योंकि वे जानते थे कि बादशाह व्यस्त रहते हैं और उन्हें परेशान नहीं करना चाहते थे।
दूसरी ओर, वादे का इंतजार उनके लिए कष्टदायी हो रहा था।
एक सुहावनी शाम, अकबर यमुना नदी के किनारे टहल रहे थे। नदी के शांत जल और हरियाली से उनका मन प्रसन्न हो रहा था।
तभी, उनकी नजर एक ऊंट पर पड़ी, जो नदी के किनारे धीरे-धीरे चल रहा था। ऊंट की टेढ़ी गर्दन देखकर अकबर को आश्चर्य हुआ।
उन्होंने बीरबल को बुलाया और पूछा, "बीरबल, तुमने कभी ऐसा ऊंट देखा है जिसकी गर्दन ऐसी टेढ़ी हो?"
बीरबल ने अवसर का सदुपयोग करते हुए कहा, "जी महाराज, मैंने ऐसा ऊंट पहले कभी नहीं देखा।
लेकिन लोगों का यह मानना है कि जो व्यक्ति अपना वादा भूल जाता है, उसकी गर्दन धीरे-धीरे टेढ़ी हो जाती है। यह ऊंट भी किसी से किया हुआ अपना वादा भूल गया होगा, तभी इसकी गर्दन ऐसी हो गई है।"
बीरबल की बात सुनकर अकबर स्तब्ध रह गए। उन्हें तुरंत अपने किए गए वादे का स्मरण हो आया।
उन्होंने महसूस किया कि वे बीरबल को पुरस्कार देने का वादा भूल गए थे।
शर्मिंदगी से उनका माथा झुक गया।
उन्होंने तुरंत बीरबल से कहा, "बीरबल, चलो जल्दी महल वापस चलते हैं।"
महल पहुंचते ही, अकबर ने बीरबल को अपना वादा निभाते हुए पुरस्कार दिया।
उन्होंने बीरबल से माफी मांगी और कहा, "बीरबल, क्या मेरी गर्दन भी ऊंट की तरह टेढ़ी हो जाएगी?"
बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, "नहीं महाराज, आप हमेशा न्यायप्रिय और उदार रहेंगे। आपकी गर्दन कभी टेढ़ी नहीं होगी।"
यह सुनकर अकबर और बीरबल दोनों ही हंस पड़े।
कहानी से सीख:
- हमें अपने किए गए वादों को सदैव याद रखना चाहिए और समय पर उन्हें पूरा करना चाहिए।
- चतुराई का उपयोग सदैव अच्छे कार्यों के लिए किया जाना चाहिए।
- हाजिरजवाबी और बुद्धिमानी जीवन में सफलता प्राप्त करने में सहायक होती है।