मैं बिहारी (साधारण) हूँ
ना आता किसी चर्चित शहर से
ना कोई जानता उस शहर का,
ना कोई चाचा उस कुनबे का
ना बैठता संग किसी के ताऊ से
मैं बिहारी हूँ उठता हूँ अपने दम से ।।
बचपन बीता हो संघर्ष में
या तराशने अपनी मंजिल में
एक ही लक्ष्य भरा था दिल में
बस बिहारी सच्चाई भरी हो उसमें
आया मायानगरी अपनी जिद टटोलने
लाख रंग-बिरंगे सुनहरे सपने संजोने,
जिद को बनाया ताकत सरपट दौड़ने
सपने बिहारी से, बेडियाँ भी थे कम पड़ने।।
पड़ाव आया कामयाबी का भी
अपनी मेहनत की सच्चाई का भी,
एक सच गहराता गया समंदर सा भी
अब बेडियाँ मोटी हो जानी थी और भी।।
लड़ता रहा उस गहराते समंदर से
लगता रहा किनारे बिना कश्ती के,
कोई हाथ ना बढाया आखरी कदम पे
रंगमंच बिहारी जान ताली बजा गया मुझपे।।
.पथ़िक.