मैं बिहारी (साधारण) हूँ - आनंद कुमार'पथिक'

AuthorSmita Mahto last updated Sep 27, 2023

मैं बिहारी (साधारण) हूँ

ना आता किसी चर्चित शहर से
ना कोई जानता उस शहर का,
ना कोई चाचा उस कुनबे का
ना बैठता संग किसी के ताऊ से
मैं बिहारी हूँ उठता हूँ अपने दम से ।।

 

बचपन बीता हो संघर्ष में
या तराशने अपनी मंजिल में
एक ही लक्ष्य भरा था दिल में
बस बिहारी सच्चाई भरी हो उसमें

 

आया मायानगरी अपनी जिद टटोलने
लाख रंग-बिरंगे सुनहरे सपने संजोने,
जिद को बनाया ताकत सरपट दौड़ने
सपने बिहारी से, बेडियाँ भी थे कम पड़ने।।

 

पड़ाव आया कामयाबी का भी
अपनी मेहनत की सच्चाई का भी,
एक सच गहराता गया समंदर सा भी
अब ‌बेडियाँ मोटी हो जानी थी और भी।।

 

लड़ता रहा उस गहराते समंदर से
लगता रहा किनारे बिना कश्ती के,
कोई हाथ ना बढाया आखरी कदम पे
रंगमंच बिहारी जान ताली बजा गया मुझपे।।

.पथ़िक.

Smita Mahto - Writter
Written by

Smita Mahto

मैं एक कंप्यूटर विज्ञान में स्नातक हूँ और अपने ब्लॉग लेखन में आत्मसमर्पित हूँ। पढ़ाई और लेखन में मेरा शौक मेरे जीवन को सजीव बनाए रखता है, और मैं नए चीजों का अन्वेषण करने में रुचि रखती हूँ। नई बातें गहराई से पढ़ने का मेरा शौक मेरे लेखन को विशेष बनाता है। मेरा उद्दीपन तकनीकी जगत में है, और मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से नवीनतम तकनीकी गतिविधियों को साझा करती हूँ।