प्रेमसागर - उपन्यास - Screenplay In Hindi

AuthorSmita MahtoSep 27, 2023

उपन्यास का नाम : प्रेमसागर
लेखक : सूर्य नारायण महतो ‘सूरज’, कोतवाली चौक, मधुबनी

पात्र परिचय

पात्रपरिचयसम्बंध
1. हंसराज65 वर्ष का सीधा-साधा व्यक्तिपिता जी
2. माया देवी55 वर्ष की अनपढ़ महिलामाता जी
3. मोहन45 वर्ष का पढ़ा-लिखा चलाक व्यक्तिबड़ा भाई
4. राधा35 वर्ष की पढ़ी-लिखी पति भक्त महिलामोहन की पत्नी
5. सुमन25 वर्ष का पढ़ा-लिखा ईमानदार, भावुक नौजवानछोटा भाई
6. प्रेम सागर16 वर्ष कि पढ़ी-लिखी अल्हड़ नासमझ लड़कीसुमन की पत्नी
7. मदन35 वर्ष का चतुर व्यक्तिसुमन का साला
8. हरी बाबू45 वर्ष का करोड़पति व्यक्तिमदन का संबंधी
9. महादेव बाबू45 वर्ष का धार्मिक व्यक्तिमोहन का दोस्त
10. ज्ञान बाबू75 वर्ष का प्रोफेसरभद्र व्यक्ति
11. नथू बाबू75 वर्ष का पढ़ा लिखा व्यक्तिभद्र व्यक्ति
12. मामा सेवक45 वर्ष पढ़ा लिखा होशियार व्यक्तिमोहन का मामा
13. रामबाबू45 वर्ष का पढ़ा लिखा व्यक्तिमोहन का जीजा जी
14. कुमार15 वर्ष का सुंदर लड़कामोहन का लड़का
15. एक व्यक्ति40 वर्ष का साधारण राहगीरअंजाना व्यक्ति
16. दूसरा व्यक्ति35 वर्ष का साधारण राहगीरअंजाना व्यक्ति
17. एक बच्ची5 महीने का दुबली पतली बीमारसुमन की बच्ची
18. शांति20 वर्ष की युवतीसुमन की साली
19. पिताजी70 वर्ष का बूढ़ा व्यक्तिप्रेम सागर का पिता
20. मां65 वर्ष की बूढ़ी औरतप्रेम सागर की मां
21. कुछ व्यक्तिराहगीर10-11

टीम के लिए स्थान

  1. एक अच्छा गेस्ट रूम सजी हुई, टेबल, सोफा लगा हुआ
  2. एक साधारण टूटी-फूटी कमरे का रूम
  3. एक साधारण रूम पक्के का जिसमें एक पलंग लगी हो
  4. एक बगीचा जिसमें कुछ फूलों का पेड़ एवं गमला हो
  5. एक चौराहा जहां कुछ पान-चाय की दुकानें हो
  6. एक आंगन या बड़ा सा रूम जिसमें शादी का मंडप लग सके

सामग्री

  1. कंबल - 1
  2. दीवार घड़ी - 1
  3. तस्वीर - 1
  4. मोमबत्ती दानी - 1
  5. मोमबत्ती - 1
  6. जेवर - 1
  7. अगरबत्ती - 2
  8. लालटेन - 1
  9. खटिया - 1
  10. फाइल - 1
  11. चाय का 5-6 प्याला और टी ट्रे
  12. खुरपी - 1
  13. सुंदर दो गुड़िया
  14. मिट्टी का आग सेंकने वाला
  15. केक, चाकू, मोमबत्ती
  16. झाड़ू - 1
  17. सात कुर्सी
  18. बाल्टी - 1
  19. अगरबत्ती - 2
  20. लालटेन - 1
  21. तकिया - 1
  22. भगवती का तस्वीर
  23. खाना का थाली - 1
  24. टेप रिकॉर्डर - 1

सीन नंबर - 1

नामप्रेम सागर
सामग्रीदो गुड्डा-गुड्डी (सुंदर दूल्हा दुल्हन का लिबास में)
सीनहरा भरा फूलों का बगीचा सुंदर गुलाब का फूल आपस में प्रेम कर रहे हैं दूल्हा दुल्हन की सुंदर गुड़िया मानो आपस में आनंद मय मुद्रा में प्रेम कर रहा हो। झरना व हरा-भरा भरा संसार को दिखाते हुए कल-कल करती हुई नदियों को बहती हुई सागर में मौज मस्ती करती हुई मिल जाती है साथ ही कलाकारों एवं डायरेक्टर का नाम दिखाते हुए....

डायलॉग - (केवल आवाज)

प्रिय दर्शक

आप सूर्य नारायण महतो 'सूरज' की लिखी उपन्यास प्रेम सागर पर आधारित छोटी अभिनय इसके पात्र वि-शुद्ध काल्पनिक है, अगर जीवन से इनकी घटना मिलती-जुलती हो तो मैं सफलता मान लूँगा।

यह वास्तव में संसार रूपी प्रेम सागर में एक अनोखा दृश्य होगा।

इसका प्रत्येक पात्र अपने-अपने रंगों में है, क्योंकि प्रत्येक पात्र को नशे की आदत है, सभी लोग बेहोशी में ज्यादा जीना पसंद कर रहे हैं।

इसमें एक पात्र है जो महगा मद पीने में लगा है जैसे सम्पत्ति का मद, अहंकार का मद जोर कर बेहोशी में सागर में उतरता है, उसका परिणाम विनाश हुआ। लेकिन एक पात्र मेरा ऐसा भी है जिसने पिया भी नशा किया भी तो बेहोश नहीं हुआ, वह स्नेह प्रेम का मद पिया, ज्ञान का मद पिया, त्याग का मद पिया और उतर गया जीवन सागर में, और उस सागर को प्रेम सागर बना दिया।

इस संसार रूपी सागर में यदि मेरे पात्र के ऐसा शराबी, बेहोश करने वाला कोई इंसान मिले तो, उनसे दूर ही रहें। यदि मेरा दूसरा पात्र जो प्रेम से होश में रहकर सागर में उतरा है, वैसा कोई इंसान मिले तो वैसे इंसान से मिलिए, बातें कीजिए आप भी प्रेम सागर में गोता लगाइए।

अब देखिए प्रेम सागर ।

लेखक

सूर्य नारायण महतो 'सूरज'

मधुबनी

 

सीन नंबर - 2

सामग्रीएक ऐसा बर्तन जिसमें आग जला कर हाथ पैर सेंका जाए और एक दीवाल घड़ी
सीनजाड़े का मौसम है साँझ के 4 :00 बज रहे हैं। हंसराज जी पत्नी माया देवी के साथ आग के पास बैठे आपस में बातें कर रहे हैं एक ग्राहक आता है।

डायलॉग

हंसराज : (झल्लाते हुए बोले) अभी नौकर नहीं है, सामान नहीं मिलेगा।

(ग्राहक का चला जाना)

माया देवी : अच्छा हीं होगा, मेरा बेटा पास होगा ही आप देखिएगा।

(गेट से हंसते हुए सुमन आता है)

सुमन : पिताजी मैं पास हो गया।

माया देवी : मैं क्या कही थी...।

(कुछ रुपया देती हूंई) बेटा! जा पहले मिठाई खरीद कर ला, ले पैसा।

(सुमन रुपैया मायादेवी से लेकर चला जाता है।)

 

सीन नंबर - 3

सामग्रीकुर्सी एक, दीवार घड़ी एक
सीनगेस्ट रूम के दरवाज़े पर कुर्सी लगाकर हंसराज गुस्सा के मूड में बैठे किसी का इंतजार कर रहे हैं घड़ी रात के 12 :00 बजा रही है।

डायलॉग

(सुमन और राधा{भाभी} का मधुर मनोदसा में रोड से दरवाजे की ओर आना)

हंसराज : (गरजते हुए)

कहां से आ रहे हैं जनाब?

(सुमन और राधा सर झुका कर भीतर जाने लगे)

हंसराज : (रोकते हुए)

रुको-रुको, खड़े हो और बताओ इतनी रात में कहां गए थे? मोहन{भाई} नहीं है यहां तो तुम लोग जो चाहोगे वह करोगे?

जवाब दो....।

सुमन : पिताजी! भाभी के साथ सिनेमा देखने गया था।

हंसराज : तुम लोग बराबर जाते हो?

सुमन : नहीं पिता जी! सिर्फ आज ही..।

हंसराज : फिर बिना पूछे तुम दोनों कहीं जाओगे ?

राधा : नहीं। पिताजी....।

हंसराज : अंदर जाओ ।

(हंसराज जी दरवाज़े से उठकर भीतर गेस्ट रूम में आते हैं । गेस्ट रूम की बत्ती बुझा कर सोने की तैयारी में । उसी समय अंदर से आवाज आती है)

(केवल आवाज)

राधा : (चिल्लाना) आ - आ - ओ माई।

(गेस्ट रूम में बिजली जलना, घड़ी रात के 1 :00 बजा रही है.)

मायादेवी : (घबराती हुए) बहू! क्या बात है? तुम चिल्लाई क्यों?

राधा : माता जी! मुझे अकेले में डर लग रहा है।

मायादेवी : सुमन! बेटा सुमन।

सुमन : (केबल आवाज) जी! माता जी।

मायादेवी : जा बेटा! भाभी के कमरे में सो जा।

सुमन : (आँख मलते आते हुए) नहीं मां। मुझे अच्छा नहीं लगता। मुझे नींद नहीं आएगी।

मायादेवी : ना बेटा। मोहन दूर देश में पढ़ाई कर रहा है।

अकेली बहू को कमरे में डर लग रहा है। जा बेटा तू तो बहादुर बेटा है। जा भाभी के कमरे में सो जा।

(सुमन चला जाता है)

 

सीन नंबर - 4

सामग्रीकेक, चाकू, मोमबत्ती, सलाई ,कुछ नाश्ता प्लेट, एक दीवार घड़ी
सीनगेस्ट रूम सजा हुआ है। टेबल पर केक, चाकू, मोमबत्ती रखा हुआ है। शाम का समय ।ड़ी 6 :00 बजा रही है। सोफा पर हंसराज बैठे हैं। सुमन का बाहर दरवाजे से आते हुए।

डायलॉग

सुमन : प्रणाम! पिताजी। मोहन भाई साहब आए?

हंसराज : नहीं तो। आता ही होगा।

(इसी समय बाहर दरवाजे से मोहन आते हुए)

मोहन : प्रणाम! पिता जी।

हंसराज : आ बेटा! क्या समाचार लाया?

मोहन : परीक्षित पास हो गया।

हंसराज : और तुम?

मोहन : मैं पास नहीं हुआ ।लेकिन परीक्षित मेरे साथ रहेगा। अगला बार निश्चित पास कर जाऊँगा।

(राधा बच्चे को लेकर आती हुई)

राधा : (मोहन एवं हंसराज का पाव छूती हुई)

बहुत देर लगा दिए ।

सुमन : सभी लोग यहां आइए। अब केक काटने का समय हो गया।

राधा : (बच्चे को लेकर सुमन के पास जाती हुई)

आइए!

(केक काटा जाता है, हंसराज जी कुमार को अपनी गोद में लेते हुए)

हंसराज : अरे! मोहन मेरा पोता कुमार तो, मेरे जैसा ही हंसता है, देखो तो!

 

सीन नंबर - 5

सामग्रीफाइल, पेन, चाय का प्याला, ट्रे
सीनगेस्ट रूम में हंसराज, माया देवी, राधा, मोहन, कुमार (कुमार अभी 1 साल का बच्चा है) सभी लोग बैठे हुए हैं। कुछ लोग इधर-उधर घूम रहे हैं। दरवाजे से सुमन का आना।

डायलॉग

हंसराज : अरे! सुमन तुम्हारी, बीo एसo सीo का फाइनल परीक्षा कब है बेटा?

सुमन : 22/11/1972(22 नवंबर, 1972) से परीक्षा शुरू है।

हंसराज : तुम, जो ठेकेदारी करता है, उसका क्या हाल है?

सुमन : (हंसराज के पास बैठते हुए)

सब ठीक चल रहा है। परीक्षित भाई साहब के नाम से भी तीन-चार काम चल रहा है।

वाटर कनेक्शन का भी काफी जोर-शोर से चल रहा है।

हंसराज : तो हिसाब-किताब का क्या हाल है?

सुमन : मैं तो, सारे कामों का हिसाब, मोहन भाई साहब को दे दिया करता हूं। अभी तक 5 से 6 लाख के लगभग इन्हें दे चुका हूं।

हंसराज : 5, 6 लाख? अरे! मोहन तुम तो कभी नहीं मुझसे कहा, कि तुम सुमन से ही हिसाब लेते हो।

मैं तो समझता था सब सुमन......।

मोहन : हां पिताजी कई उलझने थी इसलिए......

हंसराज : अरे तुम्हें कौन उलझन है? मैं अपनी दुकान से पूरे घर का खर्च वहन कर रहा हूं। तुम्हारे बच्चों का पढ़ाई लिखाई, तुम्हारी पत्नी का सारा खर्च, जेवर तक बनवा कर दिया।

सुना है तुम्हारे पढ़ाई लिखाई का भी खर्च सुमन ही देता है।

तो तुम कौन उलझन में थे? मुझसे 5 मिनट बैठ कर बता नहीं सकता था कि, सुमन का हिसाब मैं देखता हूं और 6 लाख रुपये मेरे पास जमा है.....

मोहन : (बीच में टोकते हुए)

सुमन का सारा पैसा मैं बैंक में जमा कर दिया करता हूं। आप तो घर का सारा ख़र्च चला ही रहे हैं। तो, मैं सोचा सुमन का कमाई का सारा पैसा अलग जमा रहे तो अच्छा रहेगा......

हंसराज : अच्छा तुम बताओ तुम्हारा क्या....

मोहन : मैं आधीदर्शक की परीक्षा पास कर गया हूं। अब मुझे ज़िला परिषद में नौकरी हो जाएगी.....

हंसराज : कब?

मोहन : तीन चार महीने के अंदर।

हंसराज : अच्छा, तो तुम मुझे हिसाब तो बता दे। सुमन का कमाया हुआ पैसा, तुम्हारे पास अभी कितना है?

मोहन : 6 लाख के लगभग।

1, 2 हजार कम होगा या 1, 2 हजार ज्यादा ही हो।

हंसराज : अच्छा तो, कल चलना है। सुमन के लिए लड़की पसंद करने.....

मोहन : पिताजी! अभी क्यों? इसे बीo एसo सीo परीक्षा तो पास करने दीजिए.....

माया देवी : (बीच में ही) नहीं! नहीं! तुम और राधा बहू कभी नहीं चाहोगे की सुमन की शादी हो।

अरे! मोहन, मैं बाल यूं ही धूप में सफेद नहीं कर लिया बेटा। मैं तुम लोगों की मां हूं सब समझती हूं।

सुमन : मां मेरी परीक्षा सर पर, और तुम लोग....

माया देवी : तुम चुप हो! तुम्हें दुनियादारी का कोई ज्ञान नहीं है। तुम बाद में समय बीतने पर समझोगे, क्या दुनिया है।

तुम अभी प्रेम के भूखे हो...। प्रेम से जो कुछ कह दिया बस उसी में रम जाते हो।

राधा : (चाय का ट्रे लाती हुई)

मां सुमन जी तो अभी बच्चा है।

माया देवी : अरे बाबू! तुम तो सयानी है? तुम दोनों तो डूबेगी और....

तुम्हें और मोहन को संपत्ति जोड़ने की नशा चढ़ गई है। जो रास्ते पर चलना शुरू किया है मोहन और तुम। वह सीधा विनाश की ओर जाएगी।

हां! तुम मेरी बात याद रखना। सुमन तो अभी तुम दोनों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझ में आ रहा है।

यह बेवकूफ़ तो सीधा है।अभी सोया है; जब यह जागेगा, तब समझ में आएगा....

इसे थोड़ा भी छल प्रपंच मन में नहीं है। तुम देख लेना यही मेरा बेटा आनंद प्रेममय जिंदगी जिएगा, और तुम लोग......

हंसराज : (बीच में बोलते हुए)

क्या? माया! तुम भी अब तो बस करो .....। जाओ! कल की तैयारी कर।

(माया उठ कर चली जाती है)

 

सीन नंबर - 6

सामग्रीचाय का चार-पांच प्याला। चाय ट्रे
सीनएक साधारण कोठरी सजा हुआ। सोफा, कुर्सी, टेबल लगा हुआ। लड़का पक्ष एवं लड़की पक्ष के कुछ लोग आपस में बातें कर रहे हैं। इस बीच प्रेमसागर साधारण साड़ी में लिपटी सहमी चाय का ट्रे लेकर आती है।

डायलॉग

मदन बाबू : प्रेम सागर आ। यहां ट्रे रखो।

माया देवी : (उठकर प्रेमसागर को संभालते हुई लाकर अपने पास बिठाते हुई)

आ! बेटी तू मेरे पास बैठ।

हंसराज : (मोहन के तरफ इशारा करते हुए)

मोहन! तुम पूछो।

मोहन : आपका क्या नाम है?

प्रेम सागर : प्रेम सागर।

मोहन : कहां तक पढ़ी है?

प्रेम सागर : मैट्रिक।

हंसराज : अच्छा! बेटी तो खाना बनाना जानती है?

प्रेम सागर : हां।

माया देवी : (बीच में)

मुझे बहुत पसंद है। तू, अब जा बेटी! जो तलाश करती थी वह मिल गया मुझे.....

मोहन : (चाय का प्याला उठाते हुए)

तो हां मदन बाबू आप कैसे शादी-ब्याह करेंगे?

मदन : (नम्र भाव से)

मैं गरीब किसान हूं। मैं आपको कुल कन्या दूँगा। सामर्थ जो होगा खर्च करूंगा।

हंसराज : (बीच में बोलते हुए)

मोहन...

मोहन : आप लोग थोड़ी देर चुप रहे! तो मदन बाबू आप......

मदन : मैं 15,000 खर्च करुंगा। उसे आप जैसे खर्च करा ले।

मोहन : तो ठीक है।आप तैयार होकर आए। शादी का दिन भी लेते आएँगे।

मदन : जी! अच्छा।

(सभी लोग उठ जाते हैं। मदन बाबू हंसराज एवं लड़का पक्ष वाले को प्रणाम कर बाहर तक छोड़ देता है।)

 

सीन नंबर - 7

सामग्रीग्लास 3-4, कपड़ा टांगने वाला खूटरी। 3 बेड वाला रूम, कुछ कागज।
सीनएक रूम में 3 पलंग लगी हुई है। बगल में एक टेबल है। क्या है उस पर तीन चार गिलास रखा हुआ है। दीवाल पर कपड़ा लटकने वाला. खूटरी है उस पर कुछ कपड़े टंगी हुई है। पहला पलंग पर मोहन बाबू, दूसरे पलंग पर हरी बाबू आराम कर रहे हैं, तीसरी पलंग खाली है।

डायलॉग

(रूम में मदन दाखिल होते हुए)

मदन : मोहन बाबू! अब चलिए ,सभी समान का बिल दे चुका हूं। कुछ रह गया है क्या?

मोहन : जरा देखें बिल।

मदन : (सामान का लिस्ट एवं बिल देते हुए)

लीजिए।

मोहन : अरे! जाजिम, तोशक, पंखा,पलंग नहीं लीजिएगा?

मदन : यह समान पटना में खरीदेंगे? यह सामान तो अपने यहां ही मिल जाएगा।

मोहन : सारा सामान मैं जहां जाऊँगा, वहां खरीदूंगा अपने पसंद से....।

हरी बाबू : (तम-तमते हुए)

मदन! यह क्या बोल....।

मदन : हरी बाबू! मुझे तो 15,000 खर्च करना है। मुझसे पटना में खर्च करा दे या विदेश में खर्च करवा दे।

मोहन : हां कपड़ा, घड़ी, रेडियो एवं स्टील का बर्तन के लिए नेपाल तो जाना ही होगा।

हरी बाबू : यहां सब हो गया है? या और खरीद बाना है।

मोहन : मोटरसाइकिल का पेपर लाए?

मदन : (हरी बाबू के हाथ में बिल देते हुए)

बिल देखिए।

हरी बाबू : अरे मदन तुम प्रेम सागर का शादी सुमन बाबू से कर रहे हो कि मोहन से?

मोहन : (बीच में ही बोलते हुए)

हम दोनों भाइयों में कोई अंतर नहीं है। मेरे नाम से मोटरसाइकिल अलमारी खरीदा गया तो क्या हुआ....।

हरी बाबू : (गुस्सा में उठते हुए)

क्या होगा?

बेहूदा, नालायक! छोटे भाई का शादी कर रहा है कि सौदा कर रहा है।

हम अपनी बच्ची का शादी सुमन बाबू से कर रहे हैं इसलिए सारा सामान सुमन बाबू के नाम ख़रीद होगा समझे।

मदन : (बीच में बोलते हुए बीच विचाव् करते हुए)

हरी बाबू एक मिनट आप शांत हो जाए।

मोहन बाबू आप भी बुरा मत माने। हरी बाबू का कथन ठीक ही है। लोग दूल्हा के नाम से ही मोटरसाइकिल खरीदता है।

खैर! नाम बदलवाने में मेरा अलग से थोड़ा पैसा खर्च होगा।

मोहन : (गुस्सा को पीते हुए)

अच्छा, आप लोगों को जो मन होता है करें?

 

सीन नंबर - 8

सामग्रीविवाह मंडप, कुछ कुर्सियां।
सीनशादी के मंडप पर प्रेम सागर और सुमन की शादी हो रही है। कई लोग इधर-उधर घूम रहे हैं। कुछ औरतें गीत गा रही है ।शादी होने के बाद दुल्हन प्रेमसागर चली जाती है।

डायलॉग

(मंडप पर दूल्हा सुमन को कुर्सी पर बिठा दिया जाता है।)

शांति : (दूल्हा के पास आकर लाल रंग से पैर को रंगती हुई)

जीजाजी! दूसरा पैर दीजिए।

सुमन : (शर्माता हुआ दूसरा पैर बढ़ाते हुए)- आपका नाम क्या है?

बूढ़ी औरत : (झूलती हुई बोली)

अरे! छोरी! तू-सब दूल्हे राजा को क्यों बना रही है?

दूसरी बूढ़ी : (लड़खड़ाते हुई बोल उठी)

अरे! मैं तो सुनी हूँ, दूल्हे राजा को दो-दो बाप है, मां लंगड़ी है। अरे!लड़कियों जरा दूल्हे को चला कर तो दिखा कहीं दूल्हा भी तो लंगड़ा नहीं है।

शांति : (हंसती हुई)

ना! ना! दादी, मेरा दूल्हा राजा एकदम फर्स्ट क्लास है...।

(दूल्हे को हाथ में पकड़ उठाते हुए)

देख ले दादी, आँख में चश्मा लगाकर। बाद में ना कहना।

पहली बूढ़ी औरत : (हंसती हुई)

अरे! अरे! इस छोरी को तो देख, बदमाशी। दूल्हा तो मैं अपनी पोती प्रेमसागर के लिए खरीद कर लाई हूं, इ छोरी बोलती है मेरा दूल्हा है....।

(सभी लोग हंसने लगे....। इसी बीच बाहर से एक व्यक्ति को आते हुए बोलना)

एक आदमी : (दूल्हा का हाथ पकड़ते हुए)

आप चलिए, पिताजी जलमासा पर बुलाए हैं।

(सुमन और एक आदमी साथ चला जाता है।)

 

सीन नंबर - 9

सामग्रीबाल घड़ी, रजाई, पलंग।
सीनएक रूम में चार-पांच औरतें सुमन को घेरे रखी है। हंसी-मज़ाक आपस में चल रही है। यह कोने में प्रेमसागर दुल्हन का लिबास पहने सिमटी हुई बैठी है।

डायलॉग

(सासू जी का आना)

सासूजी : क्या तुम लोग दूल्हा को छोड़ोगी नहीं। अब तुम लोग जाओ खाना खा लो।

(सभी को चला जाना धीरे धीरे सुमन सो जाता है, घड़ी 12 :00 बजा रहा है, एक औरत का आना....।)

औरत : (सुमन को जगाते हुए)

मेहमान जी! मेहमान जी! उठिए, चलिए। आपको एक चीज आज मैं देती हूं, जो आप मुझे जिंदगी भर याद रखेंगे।

सुमन : (आँख मलते हुए उठना)

क्या बोल रही हैं?

औरत : (हंसती हुई बोली)

अरे! उठिए तो.....।

(हाथ पकड़कर खींचते हुए दूसरे पलंग के पास धक्का देती हुई बोली)

अब लीजिए अच्छी चीज और गरमाइए.....।

(कहती हुई रूम से निकल गई और बाहर से दरवाजा सटा दी)

रूम में दिया जल रहा है प्रेम सागर रजाई में सिमटी अल्हड़ की तरह नींद में सोई हुई है।

सुमन निहारता रहा। सुमन घड़ी देखता है तो 3 :00 बज रहा है।

सुमन प्रेमसागर को जगाने के लिए ज्यो ही स्पर्ष किया कि; प्रेमसागर घबरा कर उठी और बाहर दरवाज़े की ओर भागने लगी झट से सुमन लपक कर उसका हाथ पकड़ना चाहा ही था कि; प्रेमसागर हाथ छुड़ा कर रूम से बाहर निकल गई।

सुमन बैठा इंतजार करता रहा कि प्रेमसागर अब आएगी तब आएगी घड़ी सुबह का 6 :00 बजा दिया

 

सीन नंबर - 10

सामग्रीसजी हुई गाड़ी (मारुति यहां जीप)
सीनसुबह का समय। 10 से 11 औरतें कुछ मर्द इधर-उधर घूम रहे हैं, मानो कुछ तैयारी में लगे हुए हैं। दूल्हा सुमन आगे उसके ठीक पीछे दुल्हन प्रेमसागर। प्रेम सागर रो रही है.....। मां ,बहन,भाभी, भाई, पिता सभी रो रहे हैं। सहेलियाँ भी रो-रो कर गीत गा रही है- बड़ा रे जतन......।
दुभी धान....।
शहनाई का धुन दिल को छू रहा हो। कठोर से कठोर व्यक्ति के भी आँख में आंसू आ गए।

डायलॉग

मां : (चुप करती हुई)

ना! बेटी! ना रो.....।

पिता : (सुमन को बोलते हुए)

बेटा! प्रेमसागर बहुत भोली है ।इसकी गलतियों को ध्यान मत देना।

मदन : (रोता हुआ)

ना रो प्रेमसागर! मैं भी साथ चल रहा हूं।

(प्रेमसागर को थामें हुए गाड़ी में बैठता है)

(मदन भी गाड़ी के अगली सीट पर बैठ जाता है)

(गाड़ी चल देती है)

 

सीन नंबर - 11

सामग्रीतकिया एक। पलंग सजी हुई। बाल घड़ी (एक)
सीनएक रूम में पलंग सजी हुई है। प्रेमसागर दुल्हन पलंग पर सिमटी बैठी हुई है ।सुमन पलंग पर बैठा दुल्हन प्रेमसागर को कुछ कह रहा है। घड़ी रात की 1 :00 बजा रही है।

डायलॉग

प्रेम सागर : (रूम में कोई टूटने एवं चिल्लाने की धीमी सिर्फ आवाज आई टै! टू!)

निकलिए.....।

राधा : (दूसरे रूम से निकल कर सुमन के रूम के पास आती हुई)

सुमन.....।

सुमन : (रूम का दरवाजा खुला हुआ, सुमन उदास मूड में हाथ में तकिया पकड़े खड़ा है)

हां....।

राधा : (रूम के भीतर जा प्रेमसागर को समझाते हुए)

देखो दुलहिन! सुमन तुम्हारा पति है, पति परमेश्वर होता है। सुमन बाहर सोएगा?

माता जी- पिताजी को मालूम पड़ गया तो वे लोग नाराज़ हो जाएंगे। यहां तक कि मैं भी तुमसे नहीं बोलूंगी। इसलिए.....।

प्रेमसागर : (बीच में ही बात काटती हुई धीरे से)

दीदी! वो इधर-उधर की बाते बोलते हैं।

राधा : (हंसी को रोकती हुई)

अच्छा.....।

प्रेम सागर : हां दीदी! मर्द है तो, बाहर सोएंगे? रोज मेरे पास चले आते हैं बगल में सोने।

क्या बताएं आपको दीदी.....।

मुझे शर्म आती है ....।

राधा : (बीच में ही बोल उठी)

ठीक है.... दुल्हन, देखो तुम्हारी बात मैं ना समझूंगी तो कौन समझेगा।

मैं सुमन को समझा देती हूं। अब वह ऐसी बातें नहीं बोलेगा। सिर्फ पलंग पर तुम्हारे बगल में सो जाएगा। बस.....।

अच्छा! अब बोलो , सुमन को भेजूं....।

प्रेम सागर : अच्छा! आप कहती है तो, ठीक है। लेकिन चुपचाप सो जाए और कोई बात ना बोले। हाथ पैर समेट कर सो जाए।

राधा : (माथे पर हाथ रखते हुए)

अच्छा जी! नहीं बोलेगा....।

(कहती हुई चली जाती है)

 

सीन नंबर - 12

सामग्रीपलंग सजी हुई। एक रूम साधारण।
सीनएक सजा हुआ रूम में एक कोने में पलंग पर मोहन बाबू बैठे कुछ सोच रहे.....।
दरवाजे से राधा का आना....।

डायलॉग

मोहन : बात क्या था....?

राधा : कुछ नहीं! सोइए (पलंग पर बैठती हुई)

मोहन : देखो राधा! अब समय आ गया है। जैसा तुम्हें बताया था, वैसा करती हो या नहीं?

राधा : क्या?

मोहन : अरे! बेवकूफ़ तुम तो, यूं सब भुला जाती हो सुमन के बारे में।

अब उसकी शादी हो गई है। वह उड़ सकता है। इसीलिए एकदम काबू में रखो। नहीं तो लाखों का नुकसान हो जाएगा।

कुछ दिन और....। दो-तीन बिल रह गया है, उसे कैस कराकर ले लेता हूं। मेरा भी परीक्षा फल आधीदर्शक का आ जाता है। तो जिला परिषद में बात हो गई है, नौकरी हो जाएगी।

तब उसके बाद। इसको पीछे लात मार कर अलग कर दूँगा। इसके शादी में, मैं कहीं का नहीं रहा।

राधा : क्या हुआ था....।

मोहन : अरे! इसका साला बड़ा चलाक निकला। नहीं तो मैं सब सामान अपने नाम करा लिया था।

राधा : यह सब तो आप मुझे कभी नहीं बोले।

मोहन : राधा! इस दुनिया में पैसा ही सब कुछ है। पैसा रहेगा तो, सब कुछ मिल जाएगा।

मैं ने गरीबी की दुनिया देखी है। अरे! पैसा के लिए बड़े-बड़े लोग भी अपना इज़्ज़त तक सरेआम बेच देता है। यहां तो मैं खुद तुम्हें कह रहा हूं। इसीलिए कोई पाप नहीं है। घर की बात घर में ही रह जाएगी।

राधा : यह सब कब तक....।

मोहन : तब तक कि जब तक मेरा सारा प्लान ना सेट हो जाए।

राधा कुछ दिन और उसके बाद मैं तुम्हारी सौगंध लेकर कहता हूं कि, यह मकान, गाड़ी, सारा जमीने, लाखों रुपए, सारा जेवर मां का, यहां तक प्रेमसागर का जेवर भी, हम लोगों का अपना हो जाएगा......।

राधा : (बीच में बोलती हुई)

प्रेमसागर का जेवर वह कैसे?

मोहन : तुम सिर्फ देखती जाओ....।

तुम्हारी सौगंध लिया हूं विश्वास है ना मेरे ऊपर?

राधा : हां, तो विश्वास है। तब ना मैं अपने आप को तुम्हारे कहने पर सुमन के हाथों बिक चुकी हूं। ना जाने तुम्हारी पैसे की हवस कभी खत्म होगा भी या नहीं.....।

(बीच में ही बोलती बोलती सिसकती हुई रोने लगी)

मोहन : राधा अब तो, जो होना था वह हो गया। हम लोग मैदान में कूद पड़े हैं।

घबराओ मत तुम सिर्फ मेरा साथ दो। अच्छा इधर घूमो! छोड़ो यह सब बातें अभी.....।

राधा : (लेटी हुई बोली)

छोड़िए! अभी मुझे बहुत रात हो गई। सो जाइए। मुझे खूब मन भर रोने दीजिए। तब मुझे नींद आएगी।

मोहन : राधा! इधर घूम.....।

राधा : (चिल्लाते हुए)

छोड़िए अभी! आपको मेरी सौगंध आप सो जाइए।

(मोहन सौगंध के बाद धीरे-धीरे सो जाता है।)

(राधा पलंग पर लेटी-लेटी, रोती-रोती आंख बंद हो जाती है। उसकी छाया उठकर बैठते हुए सुमन की ओर देखती हुई सिर्फ आवाज)
राधा : हम लोगों का भविष्य क्या होगा? इन्हें तो हमेशा जोड़ने की हवस बढ़ती रहती है। यह संपत्ति का नशा, पद का नशा, प्रतिष्ठा का नशा, पिये चले जा रहे हैं। बेहोश हो चुके हैं।
मुझे इनकी पत्नी होने के कारण बेहोशी में जीना पड़ रहा है। ना जाने आगे क्या होगा? अहंकार का तो नशा बहुत ज्यादा चढ़ गया है। मैं कहूं तो क्या कहूं पति है ।इनके खिलाफ भी नहीं कर सकती हूं।
पिताजी और माताजी का भी यही हाल है। सुमन और प्रेमसागर तो अभी प्रेम और काम में उलझा हुआ है। उस सब का मन तो अभी स्वच्छ साफ सुथरा है। उसे कहूंगी भी तो; वह भी समझ आएगा भी नहीं। यदि समझ भी गया तो पति के प्रति गद्दारी होगा ।मेरा परिवार आगे जाकर जरूर टूट जाएगा। मैं क्या करूँ? सुमन भी......।
(छाया विलीन हो जाती है। राधा गहरी नींद में सो गई)

 

सीन नंबर - 13

सामग्रीजेवर (नेकलेस)
सीनसुबह का समय है, गेस्ट रूम में एक कुर्सी पर हंसराज बैठे हुए हैं। सामने दूसरी कुर्सी पर प्रोफ़ेसर ज्ञान बाबू, बगल में मोहन बाबू बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। सामने दरवाजे से मदन आता हुआ हंसराज की ओर इशारा करते हुए.....

डायलॉग

मदन : मुझे क्यों, बुलाया गया है पिताजी?

हंसराज : अरे! मैं क्यों आपको बुलाऊंगा? आपका बहनोई बुलाया होगा। वह लड़का पगला गया है।

(मदन को इशारा करते हुए)

आइए बैठिए। सुना अपनी पत्नी को 2 दिनों से भूखा प्यासा कोठरी में बंद कर रखा है ।

पहले जाकर उसे देखिए। कोठरी खुलवाइए। बहन को खाना खिलाइए.....।

मदन : प्रोफेसर साहब, क्या मैं अपने फूल सी बहन को आप लोगों के हवाले यही दिन देखने के लिए किया था?

क्यों? घर या समाज में कोई दयालु व्यक्ति नहीं था? जो मेरी प्रेमसागर बहन को एक गिलास पानी के लिए भी पूछे?

क्या मैं समझ लूं, अब इस घर में इंसानियत चली गई।

मोहन : अरे! ज्यादा मत बोलो, बहुत हो गया डायलॉग। अपने बहनोई को बुलाकर पूछे। ऐसी गलती क्यों किया उसने।

प्रोफ़ेसर : सुमन! सुमन....।

सुमन : (सिर्फ आवाज)

क्या? महाशय आया।

प्रोफेसर : इधर आ बेटा....।

सुमन : (दरवाजे से आते हुए)

जी, महाशय।

प्रोफेसर : दो दिनों से तुम दुल्हन को कोठरी में भूखा-प्यासा बंद रखा है।

क्यों? क्या बात है?

सुमन : मेरे पिता श्री एवं मेरे भाई साहब मिलकर मुझे इस महाशय मदन बाबू के हाथ से ₹15,000 में....।

प्रोफेसर साहब : (इसी बीच मोहन बोलना चाहा कि प्रोफेसर साहब रोकते हुए)

बोल बेटा! सुमन।

सुमन : बेच दिए....।

सारा पैसा उन्होंने पा लिया सिर्फ ₹500 इन लोगों को नहीं मिला है। जो मदन बाबू बेईमानी कर रहे हैं।

इसलिए मेरे बड़े भाई साहब का आदेश हुआ है कि मैं इन्हें जहां से हो जैसे हो ला कर दूं। इसीलिए यह सब मुझे करना पारा।

अब मैं सभी लोगों के सामने अपने साला साहब से कहूँगा कि, वह मुझे जो कहना चाहेंगे कहे। क्योंकि मैं अपने आप को बिका हुआ दूल्हा समझ रहा हूं।

इन लोगों का बकाया राशि 500 रुपैया तुरंत दे दे। अपनी बहन प्रेमसागर को आजाद करा कर यहां से ले जाए। नहीं तो वह निर्दोष बेचारी प्रेमसागर दम तोड़ देगी।

मदन : (उठकर हंसराज का पैर पकड़ते हुए)

पिताजी! मुझे माफ कर दे। मैं नगद ₹500 नहीं दे सकता हूं।

हंसराज : मैं कुछ नहीं जानता हूं, मोहन से कहिए।

मदन : मोहन बाबू माफ कर दे।

मोहन : मैं क्या करूँ? पिताजी हैं। प्रोफेसर साहब हैं।

मदन : महाशय! मैं नगद पैसा नहीं दे सकता हूं। आप प्रोफेसर साहब हैं इन लोगों को....।

समझाइए सर।

(निराश होकर बोले)

तो ठीक है, मेरे पास नगद ₹500 तो नहीं है। (निकालते हुए नेकलेस)

यह सोने का नेकलेस खानदानी है जो शायद 5,000 से अधिक का होगा ही, मैं अपनी बहन प्रेमसागर को दे रहा हूं.....।

(हंसराजके सामने टेबल पर रख दिया)

मोहन : जाइए! जाइए! यह जेवर अपनी बहन को दीजिए। मुझे सिर्फ ₹500 मात्र चाहिए।

प्रोफ़ेसर साहब : (बिगड़ते हुए मोहन से)

मोहन! यह तुम क्या बोल रहे हो?

गलत बात है। मदन बाबू जो भी खर्च किए हैं या दिए हैं। वह सब अपनी बहन बहनोई को दिए हैं। तुम्हें नहीं।

अब तुम्हें कोई हिसाब या रुपैया नहीं मांगनी है। यह तो तुम्हारी मुख से ज्यादा देकर तुम लोगों का मुंह बंद कर दिए हैं। समझो? तुम लोगों को जो.....।

मोहन : (बिगड़ कर उठ जाते हुए)

अरे! जेवर दिखाता है।

हंसराज : (उठकर जाते हुए)

जाकर अपने बहनोई को दीजिए। वह बेच कर मुझे पैसा दे।

प्रोफेसर साहब : सुमन! देखो तुम यह जेवर उठा कर रखो।

अब यह जेवर प्रेम सागर का अमानत है। अभी प्रेमसागर को कोठरी खोल दो।

उसको तुम क्यों सताए गलत बात है। सब लोग खाओ-पियो। कल मैं तुम्हारे पिताजी से एकांत में बात करूंगा।

(प्रोफेसर साहब उठ कर चले जाते हैं)

 

सीन नंबर - 14

सामग्रीभगवती का तस्वीर, फूल एवं पूजा सामग्री ,घड़ी- एक
सीनएक छोटा सा रूम में एक पुरानी सोफा, एक कुर्सी, छोटा टेबल लगा हुआ है कुर्सी; टेबल पर कई किताबें रखी हुई है। एक कोने में भगवती का तस्वीर एक छोटी सी चौकी पर रखी हुई है। सामने फूल एवं पूजा सामग्री है। अगरबत्ती जल रही है। घड़ी शाम का 6 :00 बजा रही है। महादेव बाबू भगवती के आगे सिर्फ धोती आधा पहनकर एवं आधा धोती ओढ़ पूजा में लीन है। इसी बीच बाहर दरवाजे से आवाज आती है

डायलॉग

मोहन : (सिर्फ आवाज)

महादेव बाबू! महादेव बाबू।

महादेव : (पूजा अर्चना संपन्न कर उठते हुए)

कौन! भाई दरवाजा खुला हुआ है आ जाइए....।

मोहन : (दरवाजा को खोलते हुए आना)

महादेव बाबू! पूजा हो गया?

महादेव : अरे! मोहन बाबू आप? कब आए? आइए! आइए! मैं तो भगवती की पूजा संध्या में लगा था।

मोहन : (बैठते हुए)

तुरंत आ ही रहा हूं। सोचा कुछ बातें ऐसी है जो आपको कह हीं डालू । क्योंकि आप मेरे शुभ चिंतक भी हैं ऊपर से भगवती के भक्त भी।

महादेव : (हंसते हुए)

नहीं! नहीं! थोड़ा बहुत मां भगवती का आराधना कर लेता हूं। हां बैठिए। आइए इधर।

(दोनों मित्र दूसरे सोफा पर बैठ जाते हैं)

महादेव : हां, सुनाइए। क्या कहना चाहते हैं। अब मैं बिल्कुल फ्री हूं। मां भगवती के कृपा से.....।

मोहन : महादेव जी अब तो मेरे विभाग में काफी फंड आ गया है, विकास का काम जिला में विभागीय होगा। हम लोगों को 1,2 लाख पूँजी हो जाए, तो हम समझते हैं साल में भाग भी खराब हो जाएगा तो 4 से 5 लाख खा पीकर बच ही जाएगा।

इस खेल में बहुत बड़ा जवाबदेही भी है। लेकिन उसमें बाधक सुमन मेरा छोटा भाई है।

वह तो ईमानदारी का बहुत बड़ा तगमा पहने हुआ है। वह तो गलत करने नहीं देगा और गलत करेगा भी नहीं। पैसा के बदौलत आप बड़ा से बड़ा नेता को खरीद सकते हैं। बड़ा से बड़ा जज, वकील, हकीम को खरीद सकते हैं....।

महादेव : (मुस्कुराते हुए)

सच मोहन बाबू। मुझे तो आज ही यह ज्ञान आपके मुंह से यह प्रवचन सुनकर हुआ। तब तो सुमन एवं पिताश्री का पंख काट ही डालिए। उन लोगों को अपने से एकदम अलग कर दीजिए। ताकि आप जो देश एवं जनता का पैसा लुटे उसमें उन बेचारों का हिस्सा ना रहे।

उस पाप से वे मुक्त रहे.....।

(हंसते हुए)

एकदम कल ही शुरू कर दीजिए ड्रामा। अब रुकना क्या.....?

(उठकर महादेव बाबू खुद दो प्याली चाय लाकर टेबल पर रखते हुए)

हां शुरू होने से पहले इस चाय बेचारी को तो होठों से लगा लीजिए।

(जोर से हंसते हुए)

हां.. हां.. हां..।

मोहन : (हंसते हुए)

हां.. हां.. हां..। कल से शुरू कर देता हूं।

अरे! सुमन तो भावुक है ही, थोड़ा सा पिताजी को उल्टा सीधा पढ़ा देना है, बस...।

सुमन भावना में बह कर मकान से निकल जाएगा। बस मकान भी मेरा, रास्ता भी साफ आगे के लिए।

महादेव : (देखता हुआ बोला)

यह कैसे होगा भाई? आप जैसे बोल रहे हैं, सब हो गया समझो।

सुमन, मकान पर निकल भी गया। मकान सारा पूंजी, जायदाद सब आपका हो भी गया।

पिताजी, माताजी, सगे संबंधी समाज का क्या होगा? अचार बनाएँगे आप सबो का क्या?

मोहन : अरे! देखिए तो आप?....

आगे हम क्या-क्या करते हैं। कोई कुछ नहीं करेगा, दो-चार दिन बोलेंगे बस। सब पैसा के आगे चलते हैं।

(मोहन उठ कर चला जाता है)

 

सीन नंबर - 15

सामग्रीचार-पांच कप चाय। 4 गिलास पानी। दीवार घड़ी एक, कागज कुछ लिखा हुआ।
सीनगेस्ट रूम में हंसराज पलंग पर बैठे हैं। सामने सोफा पर ज्ञान बाबू एवं नथू बाबू बैठे हुए आपस में कुछ बातचीत कर रहे हैं। सामने दूसरी कुर्सी पर बैठा है। शाम के 6 :00 बज रहा है। मायादेवी टेबल पर चाय का ट्रे रखकर हंसराज के बगल में आकर बैठ जाती है।

डायलॉग

हंसराज : (पुकारते हुए)

सुमन! सुमन!

सुमन : (दरवाजे से आते हुए)

जी पिताजी।

हंसराज : (ज्ञान बाबू को इशारे से चाय की ओर)

आप लोग चाय पीजिए।

हां! बेटा! सुमन देखो....। मोहन भी सामने बैठा है, यह सब जो हो रहा है। अच्छा नहीं हो रहा है?

सुमन : क्या? मैं समझा नहीं....। मैंने क्या किया हूं? की, यहां पंचायत बैठी हुई है.....।

हंसराज : तुमने नहीं। मोहन का नाबालिक लड़कों ने, मुझ पर बटवारा का मुकदमा कर दिया है।

नोटिस आई है। देख (नोटिस का कागज बढ़ाता है)

सुमन : (नोटिस देखते हुए)

तो मैं क्या करूं? आप जाने।

हंसराज : तो ठीक है। ज्ञान बाबू, अब मेरा भी सर चकरा रहा है। आप लोग सुमन से आखिर में एक बात फाइनल पूछ लीजिए....।

ज्ञान बाबू : (चाय का प्याला टेबल पर रखते हुए)

क्या पूछे?

हंसराज : यही, कि वह, मेरा साथ देगा या नहीं?

ज्ञान बाबू : क्या बेटा! पिताजी क्या कह रहे हैं? तुमने सुना? जवाब दो।

सुमन : मैं समझा नहीं महाशय।

हंसराज : यही कि तुम मोटरसाइकिल और प्रेमसागर का जेवर बेचकर, कर्जा का आधा हिस्सा 8 हजार रुपैया दे दे और बाकी पैसा जो बचे। उसे मेरे साथ पार्टनर शिप पर कोयला के धंधे में पूंजी लगावे....।

ज्ञान बाबू : (बीच में ही बोलते हुए)

कर्ज भी हो गया? आप लोगों को....?

छ लाख रुपैया सुमन का कमाया मोहन के पास जमा था वह समाप्त?

ऊपर से ₹16,000 का कर्जा भी? यह सब कैसे हो गया भाई? यदि हो भी गया तो 3 हिस्सा कर्ज का लगना चाहिए..।

माया : (आश्चर्य से बोल उठी)

मोहन! तूने क्या किया बेटा? सुमन तो बर्बाद हो जाएगा। सुमन ही ने तो तुम्हें, तुम्हारी पत्नी को धन दौलत से लाद दिया। तुम्हें अफसर बनाने मैं पैसा से, समांग से मदद किया। तुम्हारे बच्चों को अपना बेटा समझकर हजारों रुपैया खर्च कर पढ़ा लिखा रहा है।

अपने लिए कुछ नहीं किया अभी बेटा! तू ऐसा नहीं कर सकता है। सुमन कहीं का नहीं रहेगा.....।

हंसराज : (बीच में ही)

तो सब मैं मोहन से हिसाब कर चुका हूं। हां.....।

तब तो मैं सुमन का दामन पकड़ कर उसका साथ दूँगा। नहीं, तो हम अपने मन से बटवारा सारा चीज का कर देंगे....।

नथू बाबू : हंसराज जी। सुमन आपके बताए रास्ते पर यदि चला.....।

अगर मदन बाबू{साला} कुछ.....।

हंसराज : तो अगर उधर कुछ नहीं। यदि ऐसा कुछ हुआ तो प्रेमसागर दुल्हन को छोड़ देंगे।

सोच ले। मुझे पकड़ कर रहे या दुल्हन प्रेमसागर को.....।

अब इसके पास दो ही रास्ते हैं।

ज्ञान बाबू : (उठते हुए)

नथू बाबू। तो अब हम लोग चले?

अब सुमन 5 दिन में सोचकर कहेगा।

उसके अनुसार हंसराज दी खुद फैसला करेंगे। इससे हम लोगों को क्या?

(जाते-जाते बोले)

कल तुम हमसे डेरा पर मिलो। ज्यादा सोचो मत। जा! और अपना काम धाम देख....।

माया देवी : (उठकर जाते हुए)

जा सुमन मैं सिर्फ तुम्हें आशीर्वाद ही दे सकती हूं। यह दोनों बाप बेटा सठिया गए हैं....।

अब इस घर को बर्बाद होने से ईश्वर भी नहीं बचा सकता है....।

(सुमन भी चला जाता है। हंसराज और मोहन बैठा रहा।)

 

सीन नंबर - 16

सामग्रीएक फाइल उसमें कुछ कागज़ात।
सीनगेस्ट रूम में बैठा हंसराज कुछ पेपर इधर-उधर उलट कर देख रहा है।

डायलॉग

हंसराज : सुमन! सुमन।

सुमन : (दरवाजे से आते हुए)

जी! पिताजी।

हंसराज : क्या? तुमने फैसला क्या किया?

अरे! देख अभी मैं फाइल देख रहा था, केश वाला। मैं क्या करूं?

मोहन बेईमान हो गया। तुम्हारा भी कमाया पैसा घर कर गया। तुम तो देखा था पंचों के सामने। मैं कहां तो मेरा गर्दन पर हाथ दे दिया।

मोहन बोला- हम लोग मिलजुल के थे; खा गए, सब पूंजी समाप्त हो गया। जो है बाट दीजिए। ऊपर से कर्जा दिखाया।

हंसराज : हम दोनों पति पत्नी का जिंदगी पहाड़ समझ में आता है।

समझ में आता ही नहीं अब हम लोग भी अपने लिए सोचेंगे.....।

सुमन : (बीच में बात काटते हुए)

और मैं क्या करूं? बड़े भाई साहब को नौकरी भी हो गई। इतना सारा पैसा भी। आपको भी पूंजी और दुकान भी है। मुझे तो नौकरी भी नहीं, पूंजी भी नहीं।

(कहते कहते आंख में आंसू आ गए)

तो मैं....।

हंसराज : अरे! बुड़बक! मैं क्या करूं?

मोहन भी बड़ा लड़का है, वह बेईमान हो गया तो, उसे मार दूं?

हमारे लिए तो दोनों बेटा दिल का टुकड़ा हो। इसलिए तो तुम्हें कहता हूं ना.....। कि तू अब मेरा बात मान ले तू मेरे साथ रह, मैं तुम्हें मोहन से भी बड़ा पैसा वाला बना दूँगा।

सुमन : पिताजी! एक बार तो जिंदगी में पैसा वाला बना दिया, और अब सब कुछ समाप्त हो गया।

मैं रोड पर चला आया। आप के बताए रास्ते पर ईमानदारी से चला....। और अब फिर.....।

हंसराज : अच्छा! यह सब छोड़ो। तुम क्या फैसला किया?

सुमन : मैं मोटरसाइकिल, जेवर नहीं बेचूंगा।

क्योंकि यह सब प्रेमसागर का है। उसके अलावा आप जो आज्ञा दे करेंगे। मैं हमेशा की तरह मानने के लिए तैयार हूं।

हंसराज : अब तुम्हें भी किसी ने चढ़ा दिया है। जा! अब तुम्हारा भाग्य खराब है। तो हम क्या करें?

सुन ले, कान खोल कर, ऐसा हिसाब लगा देता हूं कि तुम सिर्फ दुल्हन प्रेमसागर और मोटरसाइकिल जेवर को अपने जीभ में लेकर चाटते रहेगा। जिंदगी भर।

(सुमन कोई जवाब ना दिया। चुपचाप वहां से चला जाता है)

 

सीन नंबर - 17

सामग्रीखाना का थाली, झाड़ू, बाल्टी में पानी, दवा का सीसी, बाल घड़ी एक।
सीनरूम में पलंग पर 8 महीने की दुबली पतली लड़की बीमार पड़ी है। सुमन पलंग के पास उदास चिंता भरी निगाहों से उस बच्ची को देख रहा है। घड़ी रात के 12 :00 बजा रही है।

डायलॉग

प्रेम सागर : आप घबराइए नहीं.....।

इसका उपचार मैं जानती हूं, कर रही हूं। चेचक हो गया है। ठीक हो जाएगी।

(मायादेवी खाना थाली में लेकर रूम में आती हुई)

माया देवी : सुमन! ले खाना खा ले। अकेली प्रेम सागर इस बच्ची में लगी है। खाना नहीं बना पाई।

सुमन : नहीं मां! ले जा खाना। मैं खाना खाकर आया हूं।

माया देवी : नहीं बेटा! तुम्हें मेरी सौगंध है। वैसे हर घर में थोड़ा बहुत होता है। तुम भी खा ले और दुल्हन भी खा लेगी।

सुमन : अच्छा मां तुम सौगंध दे दी, तो रख दे। तुम जा सो जा! मैं खाना खा लूंगा।

माया देवी चली जाती है।सुमन खाना खाकर सो जाता है। घड़ी 2 :00 बजा रही है। सुमन को पेट में दर्द होने से छटपटाना। प्रेमसागर उठकर सुमन को देख रोना और चिल्लाना। सुमन को बहुत बड़ा उल्टी होना। सुमन को चयन का सांस लेना। प्रेमसागर को झाड़ू एवं पानी से घर साफ करना। प्रेमसागर और सुमन बैठकर रात बिता रही है। घड़ी सुबह का 5 :00 बजा रही है।

 

सीन नंबर - 18

सामग्रीकुछ फूलों का गमला, फुलवारी, खुरपी
सीनरामबाबू फुलवारी में फूलों के जड़ को खुरपी से खोज रहा है। सुबह का समय है।

डायलॉग

(सुमन का आना)

रामबाबू : अरे! सुमन तुम कब आए? सब ठीक है ना?

सुमन : जीजा जी! आप पर मुझे पूर्ण विश्वास है। मैं क्या करूं?

रामबाबू : क्या बात है? तुम बोलोगे तब ना.....।

सुमन : रात माँ खाना लेकर दी थी। मैं खा लिया। रात बीती मुझे पेट में दर्द हुआ। उसके बाद बहुत बड़ा उल्टी हो गया। रात भर हम लोग सोए नहीं.....।

रामबाबू : अरे! डॉक्टर साहब से दिखाया तुम?

सुमन : हां! डॉक्टर साहब का कहना है तुम्हारा जान बच गया। हो सकता है तुम रात में जो खाना खाया ज़हरीली थी।

रामबाबू : मां खाना ला कर दी थी। इसलिए कोई विश्वास नहीं करेगा। इसमें मोहन बाबू की चाल लगती है। जो मां के सर डालना चाहता होगा।

तुम धन दौलत का लोभ छोड़ो। भोगने दो उसी बेईमान को। खुद बर्बाद हो जाएगा वह लोग।

जान बचाकर दोनों प्राणी घर से निकल जाओ। कभी इन लोगों के हाथ का कोई चीज मत खाना.....।

सुमन : कहां जाएंगे?

रामबाबू : अरे! साला! जहन्नुम में जा। दुनिया इतनी बड़ी है। तुम दोनों को सर छुपाने का जगह नहीं मिलेगा?

यदि जवानी चली जाएगी तो क्या लोगे। बाल बच्चा विलट जाएगा।

सुमन : (भीगी आंखों से)

तो ठीक है। आज ही चला जाता हूं।

 

सीन नंबर - 19

सामग्री8 महीने का दुबली पतली बच्ची।
सीनगेस्ट रूम में हंसराज, माया देवी, मोहन बैठा आपस में बातें कर रहे हैं। सुबह का समय है। दरवाजे से सुमन का आना।

डायलॉग

सुमन : पिताजी! मां! पूंजी तो कुछ दीजिए।

हंसराज : पूंजी कहां है? कर्ज़ 16,000 है। 8000 अभी भी तुम दे दो। मकान में हिस्सा दे देता हूं।

सुमन : तो ठीक है। सारा जायदाद आप लोग ही रखिए। हम लोग चले जाते हैं।

मोहन : तो रोकता कौन है तुम्हें? चल जा भड़की किसको दिखाता है?

(सुमन मां की ओर देखता है मायादेवी भी कुछ नहीं बोलती है यह देख फूट-फूट कर रोने लगता है)

हंसराज : अरे! रोता क्यों है? मर्द है कि औरत! जा निकल जा

(धक्का देते हुए)

नालायक! प्रेमसागर दुल्हन को ना छोड़ेगा। जा! जेवर और मोटरसाइकिल को जिंदगी भर अगरबत्ती दिखा! मर।

सुमन अपने रूम में जा बीमार बच्ची को अपने गोद में उठा प्रेमसागर का हाथ पकड़कर बिलखते रोते हुए बाहर गेट पर निकल आता है।

 

सीन नंबर - 20

सामग्री8 महीने की बच्ची। एक सादा कागज, एक पेन।
सीनमकान के गेट पर प्रेमसागर बच्ची को गोद में लिए खड़ी रो रही है। सुमन बगल में खड़ा हो रहा है। समाज का दो तीन व्यक्ति रोकते हुए कुछ समझा रहा है।

डायलॉग

मोहन : (रोड पर आकर)

जाने दीजिए इसे। हां! देख सुमन! मैं बटवारा का मुकदमा पिताजी पर किया हूं। इसमें यदि तुम इधर-उधर किया तो इतने आदमियों के बीच में, मैं कह देता हूं। मैं तुम्हें अनंत जी के परिवार के ऐसा कर दूँगा।

तुम उन्हीं लोगों के ऐसा बँटवारा के पीछे बीलट जाएगा। एक कौड़ी भी मैं अपने जीते जी नहीं लेने दूँगा। ये मेरी सौगंध है।

सुमन : (रोते हुए)

तो, पूज्य बड़े भाई साहब! मेरी भी एक बात सुनकर याद कर लीजिए। मैं थूंक इस जायदाद पर जा रहा हूं। आपको ही मुबारक हो। मैं इसके लिए न्यायलय का मुंह अपने जिंदगी में कभी नहीं देखूँगा।

लेकिन यदि मैं जिंदा रह गया। तो यह जायदाद, मकान तो आपको मुबारक लेकिन आपको भागते भागते बर्बाद हो जाइयेगा। आप भाई का हक पचा गए, अब सरकार का बेईमानी करेंगे, जेल भी जाना होगा, यह मेरी भी सौगंध है।

लाइए सादा पेपर हस्ताक्षर कर देता हूं, ताकि आपको मुझसे न्यायालय का भी डर खत्म हो जाएगा।

मोहन : (कागज बढ़ाते हुए)

तो ले पेपर.......।

सुमन : (कागज पर हस्ताक्षर करते हुए)

अब आप खुश रहो...। मैं चला....।

(प्रेम सागर का हाथ पकड़ चल देता है)

 

सीन नंबर - 21

सामग्रीचाय का प्याला, ट्रे।
सीनगेस्ट रूम में हंसराज एवं मामा सेवक बैठा चाय पीते हुए आपस में बातचीत कर रहे।

डायलॉग

मामा सेवक : (चाय पीते हुए)

जीजा जी! नया वर्ष बीत गए। किसी ने आज तक सुमन और मोहन को एक साथ न देखा होगा।

हंसराज : तुम ठीक कहते हो। शायद मुझे भी कई वर्ष हो गया होगा।

हां! याद आया, 2 वर्ष पहले मैं शंकर भोलेनाथ का मंदिर बनवा रहा था। उसी समय, दुल्हन प्रेमसागर और सुमन मुझे ₹500 देने आया था। रुपैया दिया प्रणाम किया और चला गया।

मामा सेवक : मोहन के साथ कामों में इतना व्यस्त हूं कि, कभी फ़ुरसत नहीं मिलती। जाकर समाचार भी पूछ लू।

हंसराज : इसकी मां को कई बार कहा, की कम से कम तुम भी प्रेमसागर के बुलाने पर जाया करो।

वह भी मोहन और राधा बहू की गुलाम बनकर रह गई। चार रोटी बनाना और दुकान पर बैठना बस। दूसरा क्या काम है माया को?

दोनों में से किसी के साथ नहीं हूं, अकेले कमाना खाना। क्यों किसी का गुलामी करें?

मामा सेवक : जीजा जी! सुमन पैसा नहीं कमाया तो क्या हुआ। हम लोगों से बहुत आगे निकल गया।

हंसराज : क्या निकल गया? कौन मार लिया? 9 वर्षों में क्या किया उसने?

मामा सेवक : सुमन, मोहन से काफी ऊंचा उठ गया। इज़्ज़त में, शोहरत में, बुद्धि में।

समाज ने उसे पंच का दर्जा दे दिया। पार्टी में उसका अच्छा खासा पहचान है।

प्रेम और आनंद में हम लोगों से कहीं आगे निकल गया। तनाव नहीं है उसके जिंदगी में। यह सब आपके समझ के बाहर की बातें हैं, अभी आप नहीं समझेंगे एक-दो वर्षों के बाद समझ में आएगा।

मोहन कहां से कहां नीचे पहुंच गया।

हंसराज : नहीं! नहीं! हम लोग उसे इस याद में नहीं पूछेंगे मोहन का भी यही विचार है कि, सुमन नहीं आएगा...।

मामा सेवक : ठीक है, कौन कहता है नालायक को पूछिए। लेकिन मेरी थोड़ी सी बात दिमाग में किसी कोने में यदि जगह है तो उसे रख लीजिए।

हंसराज : क्या? क्या बोला।

मामा सेवक : पहले हैं जगह? सिर्फ मैं बोलूं और सब व्यर्थ हो जाए.....।

हंसराज : बोलो भाई। हां जगह है तुम्हारी बात रख लूँगा कैद करके....।

मामा सेवक : सुमन, शांति, हनुमान भक्त, समाजसेवी, दूसरी तरफ आपका चहेता शूरवीरा।

मोहन अहंकारी अशांत नाम को कलंकित करने वाला देश का सबसे बड़ा गद्दार व्यक्ति संबंधियों को धोखा देकर, कलपाने वाला.....।

हंसराज : तुम भी जिस थाली में खाते हो, उसी में छेद करते हो।

अरे! मोहन के, तुम सारे लोग की तरह आगे पीछे लगे रहते हो ।पैसों का अंबार लगा दिया है उसने....।

क्या हो जाएगा आसमान टूट पड़ेगा क्या?

मामा सेवक : नहीं जीजा जी! आसमान से बड़ा कुछ यदि इस ब्रह्मांड में होगा, वह टूट कर सीधा मोहन पर गिरेगा।

मोहन हिसाब में काफी बेईमानी कर रहा है। यहां तक कि मेरे नाम से 40,000 का चेक पर मेरा नकली हस्ताक्षर कर रुपए उठा लिया ।जिला बोर्ड पर लाख रुपैया कई योजनाओं के और उसे रह गया कोई काम नहीं किया जो पाप किया मोहन के कहने पर, उसी का फल मिल गया मुझे.....।

हंसराज : कौन सा पाप? तुमने मोहन के कहने पर किया....।

मामा सेवक : (उठाकर चलते हुए)

बहुत देर हो गई। अब मैं चलता हूं कल दीदी के सामने आकर कहूंगा। कि मैं कौन सा पाप किया हूं....।

(मामा सेवक चला जाता है)

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सीन नंबर - 22 >| सामग्री | चाय का प्याला, ट्रे एक। | | -- | -- | | **सीन** | **गेस्ट रूम में हंसराज एवं मामा सेवक बैठा कुछ सोच रहा है मायादेवी चाय का ट्रे रहे लेकर आती हुई।** |

डायलॉग

माया देवी : अरे! सेवक तुम कौन पाप किया?

(ट्रे टेबल पर रख सोफा पर बैठती हुई)

अच्छा चाय आप लोग पीजिए।

मामा सेवक : अच्छा हुआ दीदी तुम चली आई। यही की बटवारा में समझौता बाला कागजात पर सुमन से झूठ बोलकर हस्ताक्षर करवा लाया।

हंसराज : तो क्या हुआ? यदि तुम ना जाते तो और कोई चला जाता। इसमें पाप का क्या सवाल हुआ?

मामा सेवक : क्या हुआ? अरे! दीदी क्या नहीं हुआ? सुमन का गर्दन कटवा दिया मैंने।

सुमन को सिर्फ छह धूर जमीन और सब मोहन का।

आपके मरने के बाद आप और दीदी का भी सारा संपत्ति, जेवर भी मोहन का। और किसी का नहीं.....।

हंसराज : अरे! बेईमान यह तुमने क्या किया? ऐसी बात तो नहीं हुई थी। तुम और मोहन मिलकर रचा था। मेरा भी हाथ कटवा डाला।

माया देवी : तुम क्या किया सेवक? हम दोनों को मोहन ने जीते जी मार डाला....।

मामा सेवक : अभी भी कुछ नहीं हुआ दीदी तुम संभाल सकती हो। मैं भी मोहन को पहले नहीं पहचान सका ।लालच में आंख रहते अंधा एवं दिमाग रहते बेहोश पागल था।

अब आप जाइए और आपका धर्म....।

(कहते हुए मामा सेवक उठकर चला जाता है।)

हंसराज : (चिंता में)

माया! मोहन बर्बाद हो जाएगा। उसे अब कोई शक्ति रोक नहीं सकती।

संपत्ति इकट्ठा करने के होर में वह मां बाप भाई मामा सरकार यहां तक कि अपनी पत्नी तक को भी धोखा दिया। अब उसका विनाश निश्चित है। मैं भी अब नहीं बचूँगा माया....।

बहुत जल्द मैं मर जाऊँगा। मेरा भी श्राप मोहन को लग जाएगा.....।

 

सीन नंबर - 23

सामग्रीकंबल, बाल घड़ी।
सीनसुबह के 4 :00 बजा रहा है। मोहल्ले के सारे लोग अपने अपने घरों में सोए हुए हैं। जारा का महीना है। सर्दी काफी है। कुहासा भी छाई हुई है। मोहन कंबल ओढ़े हुए चोर की भांति छिपता हुआ सुमन का दरवाजा खटखटाते हुए....।

डायलॉग

मोहन : (दरवाजे से आते हुए धीरे से कुंडी खटखटाते हुए)

सुमन! सुमन।

सुमन : (खिड़की से देखते हुए)

जी आप! बड़े भाई साहब?

मोहन : हां सुनो सुमन! मुझ पर बिहार सरकार ने रुपैया गबन करने का आरोप लगा कर न्यायालय में मुकदमा कर दिया है। वारंट निकल चुका है। इसलिए मैं अभी छिपकर नेपाल जा रहा हूं।

तुमसे कहने आया हूं, कि पिताजी स्वर्गवास होने से पहले मुझे कुछ बता रहे थे। तुम्हारे साथ अन्याय नहीं करूंगा।

मैं माताजी से 4 कट्ठा जमीन तुम्हारी भाभी राधा के नाम लिखा लिया। पिताजी का जमीन भी मां से दान पत्र लिखा कर बेच दिया। उस सब का हिसाब लौटने पर कर दूँगा। जो निकलेगा तुम्हें दे दूंगा। मैं अपने बच्चों की सौगंध लेता हूं।

अभी तो मुकदमा में पैरवी कर मुझे सिर्फ जमानत करवा दे। मैं जेल नहीं जाना चाहता हूं। मेरा हार्ट फेल हो जाएगा।

सुमन : (बीच में बोलते हुए)

ठीक है, सरकार का रुपैया गवन आपने किया है क्या?

मोहन : (कंबल से अपना मुंह छुपाते हुए)

कोई आ रहा है। मैं चला।

सुमन! अब हमारा इज्जत तुम्हारे हाथों में हैं।

(कहते हुए चला जाता है)

सुमन : अच्छा ठीक है। मैं देखूँगा...। आप जाइए.....।

 

सीन नंबर - 24

सामग्रीफाइल
सीनरोड साफ सुथरा है। लोग आते जाते हैं। रोड के बगल में चाय पान की दुकानें हैं। दोपहर का समय, मोहन फाइल हाथ में लिए रोड पर आ रहा है। उसी समय सुमन को चाय के दुकान से निकलना।

डायलॉग

मोहन : (सुमन को रोकते हुए)

सुमन! तुम मुझे बर्बाद कर ही दिया, सिर्फ 15,000 रुपैया के चलते। मेरी नौकरी ले लिया। रे! बेईमान।

सुमन : यह आप क्या कह रहे हैं? समझा नहीं! मैं तो सौगंध ले लिया था, आपके विरुद्ध कुछ नहीं करूंगा।

अभी भी संतोष है ।आप तो मेरा सब कई लाख रुपैया ले लिए।

15,000 रुपैया पर भी मां के कहने पर मान लिया था। उसे भी अपने नाम करवा लिया। यहां तक कि शिव मंदिर का भी हिस्सा खा लिया आपने....।

मोहन : (लोगों के बीच अपनी बातें रखते हुए)

यह हमारे छोटे भाई हैं। जिसे 15,000 देने के लिए मां कही थी। इसे तुरंत नहीं दे सका। मुझे नौकरी दोबारा होने वाला था। कलेक्टर से कहकर रुकवा दिया। पुलिस से कहकर न्यायालय मैं मेरे केस का डायरी भिजवा दिया। मैं अब बर्बाद हो गया।

सुमन : आप लोग इन से पूछिए कि, तुम अपने छोटे भाई को 14 वर्ष पहले सिर्फ 6 धुर जमीन देकर मकान से निकाल दिए क्यों?

एक व्यक्ति : क्या? साहेब बोलिए। क्या? सुमन जी ठीक कह रहे हैं? आप की बोलती क्यों बंद है।

सुमन : अरे! यह क्या बोलेंगे? भाई का खाते-खाते यह इस देश के जनता का भी हक हिस्सा खाना शुरू कर दिए। एनo आरo ईo पीo योजनाओं के अंतर्गत विभिन्न कार्यों को करने के लिए किसने लिया?

यहां तक कि कुछ काम भी नहीं किया। सब हजम कर गए।

7 साल पहले हिसाब मांगा गया था। इन्होंने जवाब तक नहीं दिया। नोटिस छपी थी आप लोग भी पढ़ा होगा। तब जिला बोर्ड इन्हें 6 साल पहले निलंबित कर दिया।

पूछिए इनसे इनके बाद बिहार सरकार आज से 5 साल पहले 10,00,000 गबन का मुकदमा न्यायालय में किया, जो लंबित है। क्या यह सब मेरे अधिकार की बात है?....।

मोहन : देख! सुमन। अभी भी तुम मेरा पीछा छोड़ दो। मैं 3 महीने के अंदर तुम्हारा पाई पाई हिस्सा लौटा दूंगा।

एक व्यक्ति : (उसी भीड़ से बोल उठा)

सुमन जी! क्या इस बेईमान से मुंह लगाते हैं। मुर्दा से भी लोग उम्मीद करता है?

चलिए छोड़िए।जैसा किया वैसा ईश्वर इनको सजा दे ही रहे हैं।

कहां आपका प्रतिष्ठा? कहां इनकी… जमीन आसमान का फर्क है। चलिए। चलो! चलो! भीड़ खत्म करो....।

(सभी लोग आपस में एक दूसरे से बातें करते हुए इधर उधर चले गए)

 

सीन नंबर - 25

सामग्रीबाल घड़ी, लालटेन, खटिया, पुरानी पलंग।
सीनपुरानी, प्लास्टर चढ़ा हुआ रूम में एक टूटी खटिया परा है। बगल में दो पुरानी कुर्सी परी है। एक बहुत पुरानी पलंग पर फटी चादर बिछाई है ।उस पर राधा एवं माया देवी बैठी है ।बगल कुर्सी पर मोहन बैठा कुछ सोच रहा है घड़ी रात का 9 :00 बजा रही है।

डायलॉग

कुमार : (दरवाज़े से आते हुए)

मां! तू क्यों रोती है?

राधा : कुमार बेटा तू जा....।

खाना रखा है खा कर सो जा। खटिया पर।

कुमार : नहीं मां। आज मुझे बोलने दे। इन लोगों ने प्रेमसागर चाची और सुमन चाचा को बहुत सताए हैं।

कई आदमियों ने बताया। इसी कारण पिताजी और हम लोगों का यह हाल हुआ।

मोहन : कुमार! तू जाता है या नहीं।

कुमार : सुमन चाचा और प्रेमसागर चाची हम लोगों के भलाई के लिए हमेशा आगे रहते हैं।

मां तुम को याद होगा कि तुम्हें कालाजार हो गया था। उस समय पिताजी भी तुम्हें छोड़ दिए थे मरने वास्ते। दूसरी शादी की तैयारी कर रहे थे। उस समय भी प्रेम सागर चाची तुमसे मिलने आई। तुम्हारी बीमारी का इलाज अपने पैसों से करवाई। तुम्हारा घर उजड़ने से बच गया।

माया देवी : कुमार! तू नहीं समझेगा। यह सब भाग्य का लिखा होता है। देखना तू, मैं तेरे पिता को मैं अपना जेवर मकान जमीन सब कुछ बेच कर दे दिया।

लाखों रुपए या सब गमन के मुकदमा में चला गया। तुम्हारा पिता चिरई मशीन मकान सब तुम लोगों के लिए लगाया था।

सब बिक गया मुकदमा के पीछे या सब भाग्य का ही खेल है। उधर देखो सुमन को हम लोग 6 धुर जमीन इनके अलावा कुछ नहीं दिए। बाद में मैं सिर्फ जलावन का दुकान खोलने के लिए 1 टायर आम का जलावन 45 रुपैया में खरीद दी। उसी से वह आगे बढ़ा; वही उसकी पूंजी थी।

आज देखो उसी से अगरबत्ती का उद्योग, ना जाने कौन-कौन उद्योग बैठा लिया। आज देखो मकान, बंगला ,गाड़ी ,घोड़ा, नौकर-चाकर क्या नहीं है? उसके पास। समाज में इज्जत है कितना शांति से ध्यान-वान करता रहता है।

सब भाग्य की बातें हैं।

राधा : हां! मुझे भी एक रोज रास्ते में भेंट हुआ तो, पूछ रहा था। भाभी मुझे भगवान का दिया सब कुछ है। आप लोगों को मुझसे कोई सेवा लेना हो तो बोलिएगा।

मोहन : वो... तो तुम भी....।

कुमार : सुमन चाचा आपको खुलकर मदद करेंगे। क्योंकि वह लोग अच्छे रास्ते पर चलते हैं।

मोहन : (बिगड़ते हुए)

बेहूदा! अकल जी के बताए रास्ते पर चल पड़े हैं के बच्चा! भागता है कि नहीं....।

कुमार : होश में जीना सीखे हैं बेहोशी में नहीं आपकी तरह। उन्होंने प्रेमबस बहुतों गैर को मदद किए हैं उनसे प्रेम जोड़िए धोखा नहीं फरेब नहीं.....।

मोहन : प्रेम जोड़िए! बेहूदा! ले जा अपनी मां को प्रेम जुड़वा। भागता है अभागा...।

राधा : (रोती हुई)

कुमार चुप! यह अब पागल हो गए हैं। सारा गलत काम, सुमन को धोखा देने में मुझसे करवाया और अभी बोल रहे हैं....।

मोहन : (गुस्सा में चिल्लाते अपना सर दीवार से टकराते हुए)

माँ ! माँ ! तुम पहले इस बेहूदा को मेरे सामने से हटाओ, नहीं तो मेरा सर फट जाएगा।

राधा : कुमार! अब बस कर बेटा। तुम्हारे पिता का नशा नहीं टूटने वाला है।

तुम्हारी कोई बात इन्हें समझ में नहीं आएगी। जब सबकुछ समाप्त हो जाएगा, तब समझ आएगा।

मोहन : राधा तुम भी?

शायद! यह अभागा उसी का बेटा है। इसलिए ऐसा बात बोल रहा है ।

राधा : (रोती बिलखते हुई)

हां! हां! कुमार सुमन का ही जन्मा हुआ है। अब यही बाकी रह गया था....।

(रोती हुई रूम से बाहर चली जाती है)

 

सीन नंबर - 26

सामग्रीटेप रिकॉर्डर, ओशो का गौरीशंकर ध्यान का कैसेट। एक मोमबत्ती। ओशो का बरा तस्वीर। बाल घड़ी। मोमबत्ती दानी।
सीनएक बहुत सुंदर साफ सुथरा रूम जिसका संगमरमर का या मजाक किया है। एक दीवार से सटा एक आसान युवा मंच पर ओशो का बड़ा सा तस्वीर रखा हुआ। सामने एक मोमबत्ती दानी में मोमबत्ती जल रही है। एक कोने में ध्यान का टेप बज रहा है। सुमन प्रेम सागर ध्यान में बैठे हुए हैं। सुबह का 6 :00 बज रहा है। दरवाजे से कुमार को आकर ध्यान में चुपचाप बैठ जाना।

डायलॉग

सुमन : (कुमार को देखते हुए कपड़ा पहन कर)

कुमार! तुम! कब आया?

कुमार : चाचा जी! अभी! आप कौन ध्यान कर रहे थे?

सुमन : गौरीशंकर ध्यान। यह ध्यान तुम समझना चाहोगे क्या? यह सब समझने से पहले तुम्हें गलत आदत, धन दौलत का नशा सबको पीछे छोड़ना होगा.....।

कुमार : चाचा जी! इसलिए आप...।

सुमन : (पक्का पर कुमार के पास बैठते हुए)

हां, बेटा! सही समझा। तुम्हारे पिता धन दौलत को जोड़ना चाहे और मैं प्रेम के सागर में उतरना चाहा।

छोड़ दिया पीछे सभी जोड़ने का नशा। बस इतना ही अंतर है हम दोनों भाइयों में.....।

जो जोड़ेगा वह टूटेगा ही बेटा। जोड़ने का नशा हमेशा विनाशकारी हुआ है। प्रेम का नशा आनंददाई होता है। जीवन जी कर अपनी जिंदगी रूपी सागर को प्रेम सागर बना डाला। बेटा कुमार तुम भी प्रेम व आनंद में जीना सीखो।

--- समाप्त ---