पंचतंत्र की कहानी - व्यापारी का पतन और पुनः उत्थान

AuthorSmita Mahto last updated Aug 4, 2024
Story of Panchtantra for kids

वर्धमान नामक शहर में एक कुशल व्यापारी रहता था। जब उस राज्य के राजा को उसकी कुशलता के बारे में पता चला, तो राजा ने उसे अपने राज्य का प्रशासक बना दिया। व्यापारी की कुशलता से आम जनता से लेकर राजा तक सभी प्रभावित थे। कुछ समय बाद, व्यापारी की बेटी की शादी तय हुई। इस खुशी में व्यापारी ने एक भव्य भोज का आयोजन किया और राजा सहित राज्य के सभी लोगों को आमंत्रित किया।

समारोह में राजघराने का एक सेवक भी आया, जो गलती से राज परिवार के लिए रखी गई कुर्सी पर बैठ गया। इसे देखकर व्यापारी को बहुत गुस्सा आया और उसने सेवक का अपमान करके उसे समारोह से भगा दिया। सेवक को शर्मिंदगी महसूस हुई और उसने व्यापारी से बदला लेने का निर्णय लिया।

कुछ दिनों बाद, जब सेवक राजा के कमरे की सफाई कर रहा था और राजा कच्ची नींद में थे, तो सेवक ने बड़बड़ाना शुरू कर दिया, "व्यापारी की इतनी हिम्मत, जो रानी के साथ दुर्व्यवहार करे।" यह सुनकर राजा जाग गए और सेवक से पूछा, "क्या तुमने कभी व्यापारी को रानी के साथ दुर्व्यवहार करते देखा है?" सेवक ने तुरंत राजा के पैरों में गिरकर माफी मांगी और कहा, "मैं रात में सो नहीं पाया, इसलिए मैं कुछ भी बड़बड़ा रहा था।" राजा ने कुछ नहीं कहा, लेकिन उसके मन में व्यापारी के प्रति शक पैदा हो गया।

इसके बाद, राजा ने व्यापारी के राज महल में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी और उसके अधिकार कम कर दिए। अगले दिन जब व्यापारी किसी काम से राज महल आया, तो पहरेदारों ने उसे दरवाजे पर ही रोक दिया। पहरेदारों का यह व्यवहार देखकर व्यापारी को आश्चर्य हुआ। पास खड़ा सेवक जोर-जोर से हंसने लगा और बोला, "तुम्हें पता नहीं, तुमने किसे रोका है। यह वही प्रभावशाली व्यक्ति हैं, जिन्होंने मुझे अपने भोज से बाहर निकाला था।"

सेवक की बात सुनकर व्यापारी को सारी बात समझ में आ गई। उसने सेवक से माफी मांगी और उसे अपने घर दावत के लिए आमंत्रित किया। व्यापारी ने सेवक को बड़े विनम्र भाव से भोज कराया और कहा कि उस दिन जो भी किया वह गलत था। सेवक ने व्यापारी के सम्मान का अनुभव किया और कहा, "आप परेशान न हों, मैं राजा से आपका खोया हुआ सम्मान जल्द ही वापस दिलाऊंगा।"

अगले दिन, जब राजा कच्ची नींद में थे, सेवक ने फिर से सफाई करते हुए बड़बड़ाना शुरू किया, "हे भगवान, हमारे राजा इतने भूखे होते हैं कि गुसलखाने में स्नान करते हुए खीर खाते रहते हैं।" यह सुनकर राजा जाग गए और क्रोधित होकर बोले, "मूर्ख सेवक, तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम मेरे बारे में ऐसी बात करो?" सेवक ने फिर से राजा के पैरों में गिरकर माफी मांगी और कहा, "महाराज, रात को मैं ठीक से सो नहीं पाया, इसलिए कुछ भी बड़बड़ा रहा था।" राजा ने सोचा, "अगर यह सेवक मेरे बारे में ऐसी बातें कर सकता है, तो वह व्यापारी के बारे में भी झूठ ही बोल रहा होगा।" अगले ही दिन, राजा ने व्यापारी को महल में बुलाया और उससे छीने गए सभी अधिकार वापस दे दिए।

कहानी से सीख:
हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि किसी को छोटा समझकर उनका मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। सभी का सम्मान करना चाहिए। किसी को नीचा दिखाने से एक दिन खुद भी अपमान का सामना करना पड़ता है।