बहुत समय पहले, सुरई नामक शहर में चार ब्राह्मण मित्र रहते थे। वे गरीब थे और इस गरीबी ने उन्हें शहर छोड़ने पर मजबूर कर दिया। एक दिन, चारों ने एक नया राज्य खोजने का निर्णय लिया, जहां वे बेहतर जीवन बिता सकें। यात्रा के दौरान, वे एक घने जंगल में पहुंचे, जहां उनकी मुलाकात एक जटाधारी योगी से हुई। योगी ने उन्हें अपने आश्रम में विश्राम का निमंत्रण दिया और उनकी कहानी सुनकर मदद करने का निर्णय लिया।
योगी ने एक दिव्य दीपक प्रकट किया और उन्हें हिमालय पर्वत की ओर जाने का आदेश दिया। उन्होंने कहा, "यह दीपक तुम्हें उस स्थान पर ले जाएगा जहां अपार धन मिलेगा।" ब्राह्मण उत्साहित होकर दीपक लेकर यात्रा पर निकल पड़े। यात्रा के दौरान, दीपक तीन स्थानों पर गिरा—पहले तांबे की खान पर, फिर चांदी की खान पर, और अंत में सोने की खान पर।
पहले तीन ब्राह्मणों ने अपनी-अपनी खान से जितना चाहा, लेकर घर लौटने का निर्णय लिया। लेकिन चौथे ब्राह्मण के मन में और भी अधिक धन की लालसा जाग उठी। उसने सोचा, "यदि यहां सोने की खान है, तो आगे और भी अधिक कीमती खजाना होगा।" वह आगे बढ़ता गया, रास्ते में कई कठिनाइयों का सामना करते हुए। कांटों और बर्फीले रास्ते पर चलते हुए, उसका शरीर घायल हो गया और वह ठंड से ठिठुरने लगा।
अंततः वह एक अजीब स्थान पर पहुंचा, जहां उसने देखा कि एक व्यक्ति के मस्तिष्क पर चक्र घूम रहा है। वह व्यक्ति बहुत पीड़ित दिखाई दे रहा था। ब्राह्मण ने उससे पूछा, "तुम्हारे सिर पर यह चक्र क्यों घूम रहा है?" जैसे ही उसने यह सवाल किया, चक्र उस व्यक्ति के मस्तिष्क से हटकर ब्राह्मण के सिर पर आ गया। अब वह भी उसी पीड़ा में फंस गया।
वह व्यक्ति बोला, "सालों पहले मैं भी लालच में यहां तक पहुंचा था, और उसी समय से इस चक्र की पीड़ा सह रहा हूं। अब यह चक्र तुम्हारे सिर पर आ गया है। तुम भी तब तक इस पीड़ा में रहोगे, जब तक कोई और व्यक्ति लालच में आकर यहां तक नहीं पहुंच जाता।"
ब्राह्मण को अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। उसने सोचा, "काश मैंने संतोष किया होता और अपने दोस्तों की तरह लौट गया होता।" अब वह उस चक्र के बोझ और पीड़ा को अनिश्चितकाल तक सहने के लिए अभिशप्त था।
कहानी से सीख: लालच हमेशा दुख और विनाश का कारण बनता है। हमें जो भी मिलता है, उसमें संतोष करना चाहिए और अपनी सीमाओं को पहचानते हुए खुश रहना चाहिए।