एक दिन बादशाह अकबर और बीरबल बैठकर राज्य की प्रजा की चर्चा कर रहे थे। बादशाह ने गर्व से कहा कि उनकी प्रजा बहुत ही ईमानदार है। बीरबल ने इस पर टिप्पणी की कि संसार में पूर्ण ईमानदारी बहुत दुर्लभ है।
बादशाह अकबर को बीरबल की यह बात अखर गई और उन्होंने बीरबल से इसे सिद्ध करने को कहा। बीरबल ने फिर एक योजना बनाई और एक विशेष प्रयोग का आयोजन किया। उन्होंने राज्य भर में घोषणा करवाई कि बादशाह एक महान भोज की तैयारी कर रहे हैं और हर नागरिक से एक लोटा दूध योगदान के रूप में चाहते हैं।
प्रजा से कहा गया कि वे अपना दूध शहर के मध्य में रखे बड़े पतीलों में डालें। हालांकि, जब शाम हुई और बादशाह अकबर और बीरबल ने पतीलों की जांच की, तो उनमें दूध की बजाय ज्यादातर सिर्फ पानी ही पाया गया। लोगों ने सोचा था कि अन्य लोग दूध डालेंगे और इसलिए अगर वे पानी डालेंगे तो इससे बड़ा अंतर नहीं पड़ेगा।
इस प्रयोग से बीरबल ने सिद्ध कर दिया कि अवसर पाकर लोग अक्सर बेईमानी कर सकते हैं। बादशाह ने बीरबल की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा की और स्वीकार किया कि बीरबल का कथन सत्य था।
कहानी की सीख है कि अंधविश्वास नहीं करना चाहिए और हर व्यक्ति के ईमानदारी का परीक्षण कभी-कभी आवश्यक होता है।