रसखान का जीवन परिचय

AuthorJai Mahto2 day ago
Raskhan Hindi Poet

भारतीय साहित्य के आकाश में भक्ति काल एक ऐसा स्वर्णिम युग था जिसने न केवल धर्म और दर्शन को नई दिशा दी बल्कि काव्य को भी अनुपम रस से सराबोर कर दिया। इस कालखंड में अनेक ऐसे संत और कवि हुए जिन्होंने अपनी रचनाओं से जनमानस को कृष्ण भक्ति के सागर में डुबो दिया। ऐसे ही एक अद्वितीय रत्न थे रसखान, जिनका हृदय कृष्ण प्रेम से इतना आप्लावित था कि उनकी हर रचना भक्ति और सौंदर्य का अद्भुत संगम बन गई।

जीवन परिचय: प्रेम की राह पर एक सूफ़ी

रसखान का वास्तविक नाम सैयद इब्राहिम था और उनका जन्म एक संपन्न पठान परिवार में हुआ था। माना जाता है कि उनका जन्म लगभग 1548 ईस्वी में पिहानी (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। एक मुस्लिम परिवार में जन्म लेने के बावजूद, रसखान का मन बचपन से ही कृष्ण और उनकी लीलाओं के प्रति आकर्षित था।

उनके जीवन के प्रारंभिक वर्षों के बारे में बहुत अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन किंवदंतियों के अनुसार, एक सुंदर स्त्री के प्रति उनका तीव्र आकर्षण उन्हें सांसारिक प्रेम की गहराई तक ले गया। हालांकि, जब उन्हें उस प्रेम की क्षणभंगुरता का एहसास हुआ, तो उनका हृदय विरक्ति से भर गया। इसी वैराग्य की अवस्था में उनकी भेंट गोस्वामी विट्ठलनाथ से हुई, जिन्होंने उन्हें कृष्ण भक्ति के मार्ग पर दीक्षित किया।

इस दीक्षा के बाद, सैयद इब्राहिम 'रसखान' के नाम से जाने गए, जिसका अर्थ है 'रस की खान' या 'प्रेम का सागर'। उन्होंने अपना सर्वस्व कृष्ण के चरणों में समर्पित कर दिया और वृंदावन को अपना स्थायी निवास बना लिया। वृंदावन की गलियों, यमुना के तटों और ब्रज की प्रकृति में उन्हें कृष्ण की उपस्थिति का अनुभव होता था, जो उनकी कविताओं में जीवंत रूप से प्रकट होता है।

प्रमुख योगदान: भक्ति और सौंदर्य का अद्भुत संगम

रसखान ने अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी। उनकी कविताएँ कृष्ण के प्रति उनकी अनन्य भक्ति, प्रेम और सौंदर्य की गहरी अनुभूति को व्यक्त करती हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:

  • सुजान रसखान: यह उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है, जिसमें प्रेम और भक्ति के विभिन्न रूपों का सुंदर चित्रण है। इसमें कृष्ण की बाल लीलाओं, राधा-कृष्ण के प्रेम, गोपियों की विरह वेदना और कृष्ण के सौंदर्य का मनोहारी वर्णन मिलता है।
  • प्रेम वाटिका: इस लघु कृति में प्रेम के विभिन्न पहलुओं को सरस दोहों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। इसमें लौकिक प्रेम के उदाहरणों के माध्यम से अलौकिक प्रेम की महत्ता को दर्शाया गया है।
  • दान लीला: यह रचना कृष्ण की दान लीला का सुंदर वर्णन करती है, जिसमें गोपियों और कृष्ण के बीच हास्य और प्रेमपूर्ण संवादों का चित्रण है।
  • अष्टयाम: इसमें कृष्ण की दिनचर्या का काव्यात्मक वर्णन किया गया है, जिसमें उनके विभिन्न क्रियाकलापों और लीलाओं को आठ पहरों में बाँटा गया है।

रसखान की कविता की सबसे बड़ी विशेषता उनकी सहजता और भावानुभूति की गहराई है। उन्होंने ब्रज भाषा का प्रयोग किया, जो उस समय की लोकभाषा थी, और अपनी सरल भाषा से उन्होंने जटिल भावनाओं को भी आसानी से व्यक्त किया। उनकी कविताओं में माधुर्य, लय और संगीतात्मकता का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है, जो श्रोताओं और पाठकों को सहज ही कृष्ण भक्ति के रस में डुबो देता है।

उनकी रचनाओं में भक्ति के साथ-साथ प्रकृति का भी सुंदर चित्रण मिलता है। वृंदावन के वन, यमुना नदी, कदंब के पेड़ और गोपियों के साथ कृष्ण की क्रीड़ाओं का उन्होंने जीवंत वर्णन किया है। उनकी कविताएँ सांप्रदायिक सद्भाव का भी एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं, क्योंकि एक मुस्लिम कवि होकर भी उन्होंने कृष्ण भक्ति को अपनी आत्मा में बसाया और अपनी रचनाओं से लाखों लोगों को प्रेरित किया।

रसखान के दोहे

प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ।
जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥

कमल तंतु सो छीन अरु, कठिन खड़ग की धार।
अति सूधो टढ़ौ बहुरि, प्रेमपंथ अनिवार॥

बिन गुन जोबन रूप धन, बिन स्वारथ हित जानि।
सुद्ध कामना ते रहित, प्रेम सकल रसखानि॥

प्रेम अगम अनुपम अमित, सागर सरिस बखान।
जो आवत एहि ढिग बहुरि, जात नाहिं रसखान॥

अति सूक्ष्म कोमल अतिहि, अति पतरौ अति दूर।
प्रेम कठिन सब ते सदा, नित इकरस भरपूर॥

भले वृथा करि पचि मरौ, ज्ञान गरूर बढ़ाय।
बिना प्रेम फीको सबै, कोटिन कियो उपाय॥

दंपति सुख अरु विषय रस, पूजा निष्ठा ध्यान।
इन हे परे बखानिये, सुद्ध प्रेम रसखान॥

प्रेम रूप दर्पण अहे, रचै अजूबो खेल।
या में अपनो रूप कछु, लखि परिहै अनमेल॥

हरि के सब आधीन पै, हरी प्रेम आधीन।
याही ते हरि आपु ही, याहि बड़प्पन दीन॥

रसखान की पदावलियाँ 

मानुस हौं तो वही रसखान बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥

या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि, नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराय बिसारौं॥
रसखान कबौं इन आँखिन सों, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक हू कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं॥

सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तऊ पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥

समकालीन प्रसिद्ध कवि

जिस कालखंड में रसखान ने अपनी काव्य साधना की, वह हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्ति काल के रूप में जाना जाता है। इस युग में अनेक महान कवि हुए जिन्होंने अपनी रचनाओं से भारतीय संस्कृति और साहित्य को समृद्ध किया। रसखान के कुछ प्रमुख समकालीन कवि इस प्रकार हैं:

  • सूरदास: कृष्ण भक्ति काव्यधारा के प्रमुख कवियों में से एक सूरदास अपनी अद्वितीय रचना 'सूरसागर' के लिए जाने जाते हैं। उनकी कविताओं में कृष्ण की बाल लीलाओं और राधा-कृष्ण के प्रेम का मार्मिक चित्रण मिलता है। वे अपनी भावपूर्ण और संगीतमय पदावली के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • तुलसीदास: भक्ति काल के एक और महान कवि तुलसीदास अपनी कालजयी रचना 'रामचरितमानस' के लिए विश्व विख्यात हैं। उन्होंने राम भक्ति को जन-जन तक पहुँचाया और अपनी समन्वयवादी विचारधारा से समाज को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया।
  • मीराबाई: कृष्ण की अनन्य भक्त मीराबाई अपनी हृदयस्पर्शी कविताओं और भजनों के लिए जानी जाती हैं। उनकी रचनाओं में कृष्ण के प्रति उनका अटूट प्रेम और विरह की गहरी अनुभूति व्यक्त होती है।
  • कबीर: निर्गुण भक्ति धारा के प्रमुख संत कवि कबीर अपनी दोहों और पदों के माध्यम से सामाजिक बुराइयों पर प्रहार करते थे और ईश्वर की एकता का संदेश देते थे। उनकी वाणी में विद्रोह और सुधार का स्वर प्रमुख था।
  • केशवदास: रीति काल के प्रवर्तक माने जाने वाले केशवदास भी इसी कालखंड में हुए। उनकी रचनाओं में पांडित्य प्रदर्शन और अलंकारिकता पर अधिक जोर दिया गया है। उनकी प्रमुख रचनाओं में 'रामचंद्रिका' और 'कविप्रिया' शामिल हैं।

इन कवियों के साथ-साथ अनेक अन्य संत और भक्त कवियों ने भी भक्ति काल को अपनी रचनाओं से समृद्ध किया। रसखान इन सभी कवियों के बीच अपनी विशिष्ट शैली, कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और सहज भाषा के प्रयोग के लिए जाने जाते हैं।

रसखान का जीवन और उनकी रचनाएँ भक्ति और प्रेम का एक अनुपम उदाहरण हैं। एक मुस्लिम परिवार में जन्म लेने के बावजूद, उनका कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम और उनकी भक्तिमय कविताएँ आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। उनकी सहज और मधुर भाषा में रचित रचनाएँ हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं, जो सदियों तक कृष्ण भक्ति के रस को प्रवाहित करती रहेंगी। वे न केवल एक महान कवि थे बल्कि सांप्रदायिक सद्भाव और प्रेम के भी प्रतीक थे।

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Written by

Jai Mahto

मैं एक कंप्यूटर विज्ञान में मास्टर्स होने का गर्व महसूस करता हूं। पढ़ाई और लेखन में रुचि रखने वाला व्यक्ति हूं, नई चीजों का अन्वेषण करता हूं और नई बातें गहराई से पढ़ने का शौक रखता हूं। नए विषयों को समझना और उन पर लेखन करना मेरी प्रेरणा है।