परिचय
श्री गणेश भगवान शंकर एवं माता पार्वती के पुत्र है। कार्तिकेय इनके बड़े भाई है, जों की मुरगण के नाम से दक्षिण में प्रसिद्ध है।
गणेश जिनके कई नामो में प्रमुख है गणपति, विनायक, बालचंद्र, विग्नेश, सुमुखा, गजानना,एक दन्त, लंबकर्ण, विग्नेश्वरा, मंगलमूर्ति आदि।
गणेश को विघ्नहर्ता एंड बुद्धि के देवता भी कहा जाता है।
पूजा एवं त्यौहार
भाद्रपद (अगस्त / सितंबर) के महीने में शुक्लपक्ष के चौथे दिन में गणेश चतुर्थी या विनायका चतुर्थी और माघ के महीने में (जनवरी / फरवरी) शुक्लपक्ष के चतुर्थी के दिन गणेश जयंती (गणेश का जन्मदिन) मनाया जाता है।
भक्त गणेश को मोदक और मीठी लड्डू का चढ़ावा देते है जो की इन्हे बहुत प्रिय है। इनकी पूजा मुख्यतः लाल चंदन के पेस्ट, दूर्वा घास एवं लाल फूलों से की जाती है।
इनको सर्वप्रथम पूजे जाने का वरदान प्राप्त है। मुख्यतः इनकी पूजी किसी कार्य के आरंभ में और नये वाहन के ख़रीदे जाने पे की जाती है।
भारत में सबसे लोकप्रिय देवता होने के नाते गणपति की पूजा लगभग सभी जातियों और देश के सभी हिस्सों में की जाती है।
गणेश का जन्म
एक दिन देवी पार्वती स्नान की तैयारी कर रही थी। नहाने में उन्हें कोई बाधा न हो, इसलिए उसने नंदी से कहा कि वह दरवाजे की सुरक्षा करे और किसी को अन्दर न आने दे। पार्वती की इच्छा को पूरा करने का इरादा रखते हुए, नंदी ने ईमानदारी से यह पद संभाला। लेकिन, जब शिव घर आए और स्वाभाविक रूप से अंदर आना चाहते थे, तो नंदी उन्हें नहीं रोक पाए।
पार्वती इससे गुस्से में थी, क्योकि कोई भी उनके प्रति उतना वफादार नहीं था जितना की नंदी शिव के प्रति वफादार थे। अतः, उसके शरीर से हल्दी का लेप (स्नान के लिए) किया गया और उसमें प्राण फूंककर उसने गणेश को अपना निष्ठावान पुत्र घोषित किया।
♦Shree Ganesh Chalisa in Hindi♦
♦दोहा♦
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ।।
♦चौपाई♦
जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभः काजू ।।
जै गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता ।।
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ।।
राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ।।
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ।।
सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ।।
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।
गौरी लालन विश्व-विख्याता ।।
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।
मुषक वाहन सोहत द्वारे ।।
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ।।
एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ।।
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ।।
अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ।।
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ।।
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला ।।
गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना ।।
अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै ।।
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ।।
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ।।
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ।।
लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ।।
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं ।।
गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ।।
कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ।।
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ ।।
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ।।
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ।।
हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ।।
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये ।।
बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ।।
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ।।
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ।।
चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ।।
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ।।
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ।।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई ।।
मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ।।
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ।।
अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ।।
♦दोहा♦
श्री गणेशा यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ।।
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश ।।